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________________ जम्बूस्वामी चरित्र -पुत्रके मनकी बातको ठीक ठीक जान गया। उसको निश्चय होगया कि यह मेरा पुत्र संसारसे भयभीत है, वैराग्यसे पूर्ण है, यह अपना यात्महित चाहता है, यह अवश्य उग्र तप ग्रहण कर मोक्षको प्राप्त करेगा, ऐसा जानकर भी मोहके उदयसे चक्रवर्ती कहने लगाहे पुन ! जैसी तुम्हारी दया सर्व प्राणियों पर है वैसी दया मुझपर भी करो। सौम्य ! एक बुद्धिमानीकी बात यह है कि जिससे तुम्हें तयकी सिद्धि हो और मैं तुम्हें देखता भी रहूं इसलिये हे पुत्र ! घरमें रहकर इच्छानुसार कठिन २ तप व्रत भादि अपनी शक्तिके अनुसार साधन करो। शिवकुमार घरमें ब्रह्मचारी। हे पुत्र ! यदि मनमें रागद्वेष नहीं है तो वनमें रहनेसे क्या? और यदि मनमें रागद्वेष है तो वनमें रहनेका क्लेश वृथा है । इत्यादि पिताके वचनोंको सुनकर शिवकुमारका मन करुणामावले पूर्ण होगया। वह कहने लगा हे तात! जैसा भाप चाहते हैं वैसा ही मैं करूंगा। उस दिनसे कुमार सर्व संगसे उदास हो एकांतमें घन्में रहने लगा, ब्रह्मचर्य पालने लगा, एक वस्त्र ही रखा, मुनिके समान भावोंसे पूर्ण व्रत पालने लगा। यह रागियोंके मध्य में रहता हुआ भी कमल पत्ते के समान उनमें राग नहीं करता था । अहा ! यह सब सम्यग्ज्ञानकी महिमा है । महान पुरुषों के लिये कोई बात दुर्लभ नहीं है। कहा है कुमारस्तदिनानूनं सर्वसंगपरांगमुखः । ब्रह्मचार्यैकवस्त्रोऽपि मुनिवत्तिष्ठते रहे ॥ १३० ॥
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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