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________________ जम्बूस्वामी चरित्र विश्वास क्षण मात्र भी नहीं करना चाहिये। यह ठगनीके समान फसानेवाली है, व अनेक दुःखोंमें पटकनेवाली है। इन्द्रियों के भोग सर्पके रमण समान शीघ्र ही प्राणों के हरनेवाले हैं। यह जवानी जिसे भोगोंको भोगनेका स्थान माना जाता है, स्वमके समान या इन्द्रजालके समान विला जाती है, ऐसा प्रत्यक्ष भी दिखता है। तथा भूतकालके ज्ञानका स्मरण भी इसे देखकर होता है। यदि यह राज्यलक्ष्मी उत्तम थी तो महान ऋषियोंने क्यों इसका त्याग किया। पूर्वकालका चरित्र सुनाई पडता है कि पहले बड़े बड़े ज्ञानी श्रीमान ऐश्वर्यवान होगए हैं, उन्होंने सर्व परिग्रह व राज्यको त्यागकर मोक्षके लिये तप स्वीकार किया था। हे तात ! ये भोग भोगने योग्य नहीं हैं। ये वर्तमानमें मधुर दीखते हैं, परन्तु इनका फल या विषाफ कडवा है। इन भोगोंसे मुझे कोई प्रयोजन नहीं है। धर्म वही है जहां अधर्म न हो, पद वही है जिसमें कोई भापत्ति न हो । ज्ञान वही है जहां फिर कोई अज्ञान च हो । मुख वही है जहां कोई दुःख न हो। भावार्थ-वीतराग विज्ञान धर्म है, मोक्षपद ही उत्तम पद है, केवल ज्ञान ही श्रेष्ठ ज्ञान है, मतीन्द्रिय मात्मीक सुख ही सुख है। स धर्मों यत्र नाधर्मस्तत्पदं यत्र नापदः । तज्ज्ञानं यत्र नाक्षानं तत्सुखं यत्र नामुखम् ॥ १५१॥ बुद्धिमान चक्रवर्ती इस तरह बोधप्रद पुत्रके वचनोंको सुनकर
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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