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________________ जम्बूस्वामी चरिण हैं इस भतीचारका ध्यान उससमय मुनिराजने उसके धर्मानुरागके महत्वको देखकर नहीं किया । यह उनका भाव था कि किसी प्रकार यह मोक्षमार्ग पर दृढतासे मारूढ़ होजावे । यद्यपि सुनिने माहार ras नवधाभक्तिमे लिया होगा | जब भोजनका समय होगा तब उस श्रावकने अतिथि संविभाग व्रत के अनुसार ही आहारदान दिया होगा । यदि वह स्वीकार नहीं करते तो उसका मन मुरझा जाता व धर्मप्रेम कम होने की भी संभावना थी । इत्यादि बातोंको विचार कर परम उदार, जिन धर्मके ज्ञाता, द्रव्य, क्षेत्र, काळ भावको विचारनेवाले मुनिराजने उसके हाथका उसी दिन माहाग्वान लेना उचित समझा । किंचित् अतिचार पर ध्यान नहीं दिया। उसके सुधारका भाव अतिशय उनके परिणामसें था । ) · आहारके पश्चत् भावदेव मुनिगन अपने गुरु सौधर्म के पास, जो अनेक मुनिसंघ सहित वनमें तिष्ठे थे, ईपथ सोधते हुए चलने लगे तब नगरके कुछ लोग मुनिकी अनुमति विना ही विनय करनेकी पद्धति से मुनिगनके पीछे चलने लगे। वे लोग कितनी दूरतक गए फिर अपने प्रयोजन वशसे मुनिको नमस्कार करके अपने २ घर लौट पाए । भवदेव छोटा भाई भी मुनिके साथ पीछे २ गया था । वक्ष भोला यह विचारने लगा कि जब मुनि माज्ञा देंगे कि तुम जाओ तब मैं लौहूंगा। इसी प्रतीक्षा से अपने गौरववश पीछे २ चळा गया | मुनि महाराजने ऐसे वचन नहीं कहे न वह कह सके थे; ५३
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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