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________________ स्वामी चरित्र पुषा जाता है, ऐसा मैं मानता हूं। इत्यादि मुनिरूपी समुद्रसे धर्माधृतले पूर्ण पवित्र वचनोंके रसको पीकर भवदेव बहुत संतुष्ट हुमा और उन्होंने भावपूर्वक भावकके व्रत ग्रहण कर लिये। भवदेवका आहारदान। ब्रतोंको ग्रहणकर उसी समय मुनिराजसे प्रार्थना की कि स्वामी! आन मेरे घर कराकर भाप भोजन स्वीकार करें । धर्मके मनरागसे पूर्ण छापने छोटे भाईके बचन सुनकर मुनिमहाराजने दोषरहित शुद्ध पाहार ग्रहण किया । कहा है- पीत्वा वाक्यापूतं भूतं प्राप्त मुनिमहोदधेः। भवदेवो व्रतान्युनः श्रावकस्याग्रहीत्तदा ॥ १५३ ।। संग्रहीतव्रतेनाशु विक्षलो मुनिनायकः । स्वामिन्नत्र गृहे मेऽध त्वया भोज्यं कृपापर ॥ १५४ ॥ .विशरनुजस्यैव भ्रातृधर्मानुरागतः । निः स शुद्धमाहारं निःसावधं जघास सः ॥१५॥ (नोट-इन वाक्योंसे मुनिराजकी उदारता व सरलता व सज्ज. नता व निरभिमानता प्रगट होती है। एक यज्ञकी हिंसाका माननेवाला ब्रामण जब हिंसाको त्यागकर श्रावकके महिंसादि बारह व्रतोंको स्वीकार करता है तब उसी क्षण वह श्रद्धावान श्रावक माना जाने कगा। उसके हाथका माहार उसी दिन लेना मुनिने मनुचित नहीं समझा । उसको भाहारकी विधि सब बतादी थी। यद्यपि उसकी प्रार्थना एक निमंत्रण रूपमें थी। जैन मुनि निमंत्रण नहीं मानते ३
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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