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________________ - जम्बूस्वामी चरित्र होता है। महिंसादि व्रतोंके पालनेसे शुभ भाव होते हैं। हिंसादि पापोंसे अशुभ भाव होते हैं। इस प्रकार श्री गौतमस्वामीने श्रेणिक महाराजको सात तरबोंका वर्णन किया। इतने हीमें चाकाशसे कोई तेजमई पदार्थ उतरता हुमा दिखलाई पड़ा । ऐसा झलकता था कि सूर्यका बिम्ब अपना दूसरा रूप बनाकर पृथ्वीतलपर वीतराग भगवानकी समवशरण लक्ष्मीके दर्शन करनेको माया हो। विद्यन्माली देवका आना। महाराजा श्रेणिक इस अकस्मात्को देखकर आश्चर्य में भर गए। गौतमस्वामीसे पुनः पूछा कि यह क्या दिखलाई पड़ रहा है ? ऐसा पूछनेपर गौतमस्वामी कहने लगे कि हे राजन् ! यह महाऋद्धिका धारी विद्यन्माली नामका देव है, प्रसिद्ध है। अपनी चार महादेवियोंको लेटर धर्मके अनुरागसे श्री जिनेन्द्रकी वन्दना करने के लिये शीघ्र २ चला आरहा है। यह भव्यात्मा माजसे सात दिन स्वर्गसे चयकर मानव जन्ममें आयगा । यह चरम शरीरी है, उसी मनुष्य भवसे मोक्ष जायगा। श्रेणिकके प्रश्न। गौतमस्वामी के वचन सुनकर राजा श्रेणिक भक्तिभारसे पूर्ण हो व परम प्रीतिपूर्वक तीन जगतक गुरु श्री जिनेन्द्र भगवानसे प्रार्थना करने लगे कि हे कृपानिधि स्वामी! मापने भपनी दिव्यध्वनिसे यह उपदेश किया था कि जन देवोंकी भायु छः मास शेष रह जाती ४२
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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