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________________ पंचम भाग ( ३३९) कहता हूं मेरे सामने न पाओ, अपने प्राणों की कहीं रक्षा जाकर करो। अंकुश-क्या युद्ध से डरते हो ? युद्ध में बालक और बड़ का प्रश्न नहीं होता । प्राओ मुझसे युद्ध करो या अपनी कन्या को मेरे हाथ सौंपो। प्रथुमती-फिर वही दिलको क्रोध उपजाने वाली बात । सम्हत जा, सम्हल जा। अब तक मैं चुप खड़ा था, अब जोश आया मुझमें । मुझको भी देखना है. कितना है तेज तुझमें ॥ : (पदी खुलता है। दोनों में युद्ध होता है अंकुश उसे गिरा देता है । गिराकर उससे पूछता हैं ।) अंकुश-बता, बता, अब हमारा क्या कुन्त है ? प्रथुमती-बाह, छोड़दो, छोड़दो, क्षमा करो। तुम क्षत्री हो । मैं भूला हुआ था, मेरा अपराध क्षमा करो, मैं आपको शीश नवाता हूं । अपनी कन्या श्रापको अवश्य दूंगा। ___अंकुश-( उसे छोड़कर ऊपर उठाकर ) उठो मैं इतने से ही प्रसन्न हूं प्रथुमती–मैं बड़ा अपराधी हूं । आप शूरवीर क्षत्री धर्मास्मा और क्षमावान हैं। चलिये, मैं आपके साथ अपनी कन्याका विवाह करता हूं। पर्दा गिरता है।
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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