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________________ चतुर्थ भाग (३०५ ) . विभीषणः-जैसी आज्ञा, (जाता है और लेकर आता है) राम-कुम्भकरण, मेघनाथ, और इन्द्रजीत, आप लोग जानते हैं, कि रावण खोटे मार्ग पर था। दूसरे उसकी मृत्यु लक्ष्मण के हाथ से थी, उसे कोई रोक नहीं सकता था, अब जो हुवा सो हुआ, यदि तुम लोग बन्धन से छूटना चाहते हो और आनन्द सहित विभीषण सहित लंकाका राज्य करना चाहते होतो हमें मस्तक नमामो । कुम्भकरण-जैसा आप कहते हैं, हम लोग उससे सह.. मत हैं हम भापको मस्तक नमाते हैं । भाज से हम आपके सेवक बनकर रहेंगे। राम-विभीषण ! इन्हें बंधन मुक्त कर दो। (विभीषण उन्हें खोल देता है, मेघनाथ, और इन्द्रजीत उसके पैर छूते हैं। कुम्भकर्ण गले से मिलता है, फिर तीनों राम के और लक्ष्मण के पैर छते है) सब-बोल श्री राम लखन की जै। हनुमान--महाराज ! जिसके लिये आपने ये सब कुछ किया है उसकी चलकर सुघ क्यों नहीं लेते ? वो आपके विरह में व्याकुल हैं। राम-आह, सीता ! तुम मेरे विरह में कितनी व्याकुल होंगी ? मित्र विभीषण ! सीता कहां है ?
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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