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________________ ( ३०४) श्री जैननाटकीय रामायण वाले आज निर्जीव पड़े हो । उठो, उठो, आप तो महलों में सोते थे, आज भूमी पर क्यों पन्द्र हो । राम-विभीषण ! तुम इतने व्याकुल न होओ । धीर धरो . इस पृथ्वी पर जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु अवश्य ही होती है, केवली के वाक्य झूठे नहीं हो सकते । रावण की मृत्यु लक्ष्मण के हाथ से ही होनी थी । नारायण सदा से प्रति नारायण की मृत्यु का कारण होता है। (इतने ही में मन्दोदरी रोती हुई आती है। ) मन्दोदरी:-प्राणनाथ ! मुझ अबला को छोड़ कर कहां चल दिये । आपने तो कहा था कि मैं युद्धसे जीत कर पाउंगा। ' अब ये भापको क्या अवस्था हो रही है। पर्दा गिरता है अंक तृतिय-दृश्य चतुर्थ (राम लक्ष्मण लब राजाओं सहित आते हैं।) विभीषणः-- लंका मापके अधिकार में है। आप जैसा बाहें इसे करें । रामः- मित्र विभीषण ! तुम मेरे सामने अपने भाई और भतीजों को जो कि बन्धन में पड़े हुवे हैं ला। ताकि उन्हें मैं बन्धनमुक्त करूं।
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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