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________________ (२८०) श्री जैननाटकीय रामायण - - - सेवा की ! जिनके ऊपर तू इतना उछल रहा है उन्हें मैं एक बुटकी से पीस सकता हूं। हनुमान--जिन्हें तुम बल हीन समझते हो वो तुम्हारे लिये काल हैं । यदि अब भी अपना भला चाहते हो तो जाओ रामके पैरों में गिरकर उनसे क्षमा मांगो । और सीताको लौटा दो। रावण-ओ नहीं सुना जाता । इस दुष्ट की मौत निकट है । जाओ इसे मेरे सामने से ले जाओ । इसे नंगा करके सारे नगर में पागल की तरह से घुमाओ । (सेवक लोग हनुमान को ले जाते हैं) मेरे द्वारा पाला हुआ और मेरे लिये ये शब्द । दूत-(भागा आकर ) गजव होगया । रावण-क्या हुआ ? दूत-हनुमान सब बन्धन तुड़ा कर भाकाश में उड गया लंका के सारे दरवाजे ढा दिये। आपका राज महल चर २ कर दिया बन्दीखाना तोड़ कर सब कैदियों को छुड़ा लेगया। रावण-कोई चिन्ता की बात नहीं, सब देखा जायगा। . विभीषण-भाई साहब ! श्राप इस बात को अच्छी प्रकार जानते हैं कि जब तक आप नीती और न्याय पर चलते रहे आपकी कभी पराजय नहीं हुई । न्याय और नीती पर चलने
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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