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________________ चतुर्थ भाग (२७९ ) राजों को अानी में जलते हुवे बचाया । भागे बढ़ कर आपका यन्त्र तोड़ कर लंका सुन्दरी को परणा ! बनाया हुधा माया का दूत - ( भागा कर ) महाराज की जय हो । इन्द्रजीत हनुमान को नाग फांस में फांस कर ला रहे हैं । इन्द्रजीत --- ( हनुमान को अगाड़ी के ) देखिये पिताजी आपके चरणों के प्रशाद से मैं इसे बांध लाया हूं | अब जो उचित समझें इसे दण्ड दें । रावण - इनूमान ! हनुमान !! मैंने तुझे पुत्र समझ कर राज्य दिया और मेरे ही साथ में तूने ये विद्रोह किया | तुझे जाज नहीं आती । हनूमान - - तुम्हारा मेरा राजा और प्रजा का नाता था । जिस समय राजा अन्याय करता है उस समय उसका साथ देना धर्म के विरुद्ध है । तुम तो क्या अन्याय और अनोती के कारण पिना पुत्र का सम्बन्ध छूट जाता है । कुंमारी कन्यां से यारी, कृ नृपति की सेवा करके । कुमित्रों के संग में रह कर, पुण्य सब नष्ट भ्रष्ट करके || नरक में दुःख उठाते हैं, घूमते हैं धक्के खाते । न्याय और नीती पर चलते, वहीं हैं जग में यश पाते ॥ रावण - तूने कितना बड़ा धर्म किया हैं जो अपने सहारा देने वाले का साथ छोड़ कर उन निर्षन बनवासियों की
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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