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________________ चतुर्थ भाग (२५१ ) राम-हाय सीता ! मैंने तुझे अयोध्या में ही मना किया था तूने एक न मानी । तुझ कोमलांगी को कौन उठा ले गया हा अब मैं अयोध्या क्या मुंह लेकर लौटूंगा ? सीता ! तु सतियों में श्रेष्ठ है न मालूम तुझ पर क्या आपत्तियां पड़ेगी | यदि में ऐसा जानता तो तुझे कदापि छोड़कर न जाता । हाय मेरा दुर्भाग्य । मैं तुझे कहां ढूंढूं, क्या करूं। गानाः-सीता सीता पुकारूं मैं बन में, सीता प्यारी बसी मेरे मन में। जाके क्या समझाऊंगा वतन में, छोड़ पाया कहां सीता बन में ॥ जानती थी कि जाऊंगी तजकर, __ क्यों लुभाया मुझे प्रेम कर कर । कर गई शोक पैदा वदन में, छोड़ अांसू गई तू नयन में । (गमचन्द्र बेहोश होकर गिर जाते हैं। लक्ष्मण और विराधित आते हैं।) लक्ष्मण-भाई साहब ' आप यहां किस लिये सो रहे हैं चलिये स्थान पर चलिये । माता सीता कहां है ? (रामचेनते हैं)
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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