SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय भाग (२१९) - बड़े भाई साहब को राज न दिलाकर अपने पुत्रको राज दिलाया मुझसे यह अधर्म नहीं देखा जाता, किंतु नहीं । जिसमें पिताजी की मरजी है उसके विरुद्ध मुझे कुछ भी नहीं करना चाहिये । मैं अपने बड़ भ्राता रामचन्द्रजी के साथ बनमें जाऊंगा, ऐसे राज्य में में कहानि न रहूंगा! राम-क्यों लक्षमण तुम यहां किस लिये आये ? और खड़े होकर क्या सोचते हो ? __लक्ष्मण-भाई साहब में पापके साथ वन में जाने की सोच रहा हूं। आप मुझे प्राज्ञा दीजीये कि आपकी सेवा करने के लिये मैं वन को चलू । राम-भाई लक्ष्मण ? जिस प्रकार सीता ने बन जाने की ठान रखी है ! उसी प्रकार तुम मूर्ख न बनो । तुम घर पर रह कर सुख भोगो। माता सुमित्रा का शान्ता दो । लक्ष्मण---भाई साहब ! आप मुझे अपने साथ ले चलने से न रोकिये । मैं अवश्य ही आपके साथ चलूंगा, आपके जैसा संग मुझे तीनों लोकों में भी दुर्लभ है। गम-यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो माता पिता से आज्ञा प्राप्त करो। पर्दा गिरता है
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy