SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहा जाता है. प. पतंजलि मुनि तिनकें मतमें हूआ, तिसले वर सांख्यमत, और योगशास्त्र बलाया, पहिलक यज्ञ किसीभी सांख्यामतवालने नहीं निकाला है. यह वृत्तांत आवश्यक सूत्रादि ग्रंथों में है। व-श्री ऋषभदेव को पुत्र भरतने पसंडवा राज्य, और चक्रवर्तिकी पदी पाई, तिसने श्री ऋषभदेवके उपदेशसें ऋषभदे भगवान्की स्तुति, और गृहस्थ अर्थात् श्रावक धर्म के निरूपक चार वेद, श्रावक नाह्मणों के पढने वास्ते रचे, तिनके चार नाम रख्खे. "संसारादर्शनवेद, (१) संस्थापनपरामर्शलवेद, (२) तलावबोधवेद, (३) विद्याप्रबोधवेद, (४)" ईन चारों वेदोंका पाठ, भरत महाराजा के मेहेल के श्रावक लोक पठन पाठन करतेथे, और भरत राजा के कहने से लिख प्रतिचार वाक्य भरतकों सुना तेथे यथा जितो भवान्, (१) र्द्धतेभयं, (२) तस्मात् , (३) महान माहन, (४) इनमें पीछले माहन' शब्द के वारंवार उच्चार न करने में लोकोंने तिन श्रावकों का नाम माहन, और ब्रह्मचर्य के पालने से उन हीमाहनोंका नाम ब्राह्मण प्रसिद्ध करा. यह चारों
SR No.010504
Book TitleJain Mat Vruksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1900
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy