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________________ श्री जैनहितोपदेश भाग २- जो. सुश्रावके अनुक्रमे सद्गुरुं समीपे पांच अणुव्रत, त्रण गुणवत अने च्यार शिक्षावत मळीने द्वादश व्रत संबंधी दृढ नियम लेवो जोइये. आवा व्रतधारी श्रावकोए प्रभुनी पवित्र आज्ञाने अनुसरी वो तटस्थ अने न्याययुक्त - निष्पक्षपात व्यवहार चलाववो जोइए के ' ते प्राय: सर्व कोइने प्रिय थइ पडया विना रहेज नहि. निपुण श्रावक न्यायनो एवो नमूनो होवो जोइये के कोइ पण सहृदय पुरुष तेनुं अनुमोदन या अनुकरण करवा चूके नहि. ७२ आवा सुश्रावको जरुर स्वपरनी उन्नति पूर्वक पवित्र जिनशासननी उन्नति पण करी शके छे, अने अनुक्रमे सत् चारित्रने सेवी अक्षय मुखना अधिकारी थइ शके छे. शम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा अने आस्तिक्य लक्षण सम्यकत्व पूर्वक द्वादश व्रतधारी श्रावको, धर्म आराधक थइने आनंद, कायदेवनी पेरे एकावतारी थइने अंते शास्वत सुखने पामी शके छे, केटलाक भवभीरु महाशयो संसारनी असारता विचारीने, पूर्वोक्त तोनुं यथार्थ पालन करी, मुनि योग्य महाव्रत लेवा उजमाळ थाय छे. महात्रत लेवाना अथींजनोए प्रथम तेनुं स्वरुप यथार्थ पीछाणीने थोडो वखत पण पहेलां तेनो अभ्यास पाडीनेज ते लेवां योग्य छे.
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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