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जैनहितोपदेश भाग ३, जो.
३, गमे तेवा संयोगोमां जे समता धारी राखी मुंझाता नथी ते आकाशनी जेम पाप पंकथी लेपाताज नथी. सम विषम संयोगोमां मुंझाइ जे संकल्प - विकल्पने वश थइ आर्त्तध्यानमां पड़ी जाय छे तेज पाप पंकथी लेपाय छे.
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४. संसारमा रह्या छतां ठेकाणे ठेकाणे संसारनु नाटक जोड़ने जे खेद पामता नथी तेवा मध्यस्थ दृष्टि मोहथी लेपाता नथी. संसारमां विचित्र संयोगयोगे पण जे समभाव तजता नथी अने सर्वत्र समानभाव राखे छे एवा समभावीने समताना बलथी मोह पराजित करी शकतो नथी.
५. मोहनी प्रवलताथी विविध विकल्पोने वश थइने जीव दीर्घ संसार परिभ्रमण करे छे. जेम उपराउपर दारुना प्याला पीवाथी परवश थयेला जीव अनेक प्रकारनी कुचेष्टा कर्या करे छे 'तेम मोहना प्रवल वेगमां तणाता जीवना महा माठा हाल थाय छे माटे सुखना अर्थी जीवे मोह मदिराथी दूर रहेवा समताने धारी संकल्प विकल्पोने शमावी देवा यत्न करवो युक्त छे. एम करवाथी सहज स्वभाविक निर्विकल्प शान्त सुखनी प्राप्ति थइ शके छे. प्रबल मोहने पराधीन थलो प्राणी स्वप्नमां पण एवं सुख पामी शकतो नथी.
६, आत्मानु स्वभाविकरूप तो स्फटिक रत्र जेवुं निर्मल छे. परंतु पुनलना संबंधी जीव जड जेवो थइ तेमां मुंझाई जाय छे.
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