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________________ श्री.जैनहितोपदेश भागः३. जो. भाव वर्ते छः जेमने सर्वांगे स्थिरता थइ छे तेवा. महापुरूषने सर्वत्र समपरिणामज. वर्ते छे. खरं कल्याण पण.तेमनुज थाय छ । · ·६. जो घटमां एक स्थिरता प्रगटे तो अनेक प्रकारना मलीन संकल्प विकल्प खतः उपशमे. केमके मलीन संकल्प विकल्पो अस्थिर मनमाज प्रभवे छे. जेम देदीप्यमान रत्ननो दीपक मेहेलमां प्रगटयो होय, तो. धूमाडावडे मंदिरने श्याम करी नांखे एवा कृत्रिा दीवा करवानुं प्रयोजनज न रहे, तेम'जो मनमंदिरमा एक स्थिरता गुण प्रगट थाय तो तेमां अन्यथा उठता अनेक प्रकारना संकल्प विकल्प स्वयं उपशम पामे अने आत्मानी सहज, ज्ञान ज्योति स्थायीपणे प्रसरे जेथी-सर्व भावने हस्तामलकनी पेरे देखी शकाय. . ७. हे वत्स, जो तुं स्थिरतानो त्याग करीने अस्थिरतानी उठीरणा करीश तो तारी घणी महेनतथी वाधेली समाधि डोलाइ जशे. जेम प्रबल पवनना योग येघघटा विखराइ जाय छे तेम संकल्प विकल्प करवाथी पूर्व महा परिश्रमथी पेदा करेली समाधिनों लोप यह जाशे. माटे जेम वने तेम सर्व संकल्प विकल्पने शमाविने स्थिरता योगे समाधि सुखमाज मम रहेउचित छे..अस्थिरता करवाथी तो मात धयेली समाधिनो पण नाश थइ जाय छे. ८. आत्म गुणमांज स्थिरता करवी तेनुं नाम भाव चारित्र छे, निश्चय चारित्र तो सिद्ध भगवानमां पण वर्ते छे. एटले के सिद्ध
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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