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________________ १८२ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. षध अने अतिथि संविभागरुप द्वादशव्रत गृहस्थ (श्रावक) ने होइ शके छे. साधु मुनिराजनें तो सर्वथा हिंसा, असत्य, अदत्त, अब्रह्म तथा परिग्रहना परिहारथी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अने असंगतारुप पांच महाव्रतो पाळवा साथे रात्रीभोजननो सर्वथा त्याग करवानो होय छे. (विवेकवंत गृहत्य पण रात्रीभोजननो त्यागज करे छे,) ते उपरांत साधु मुनिराजने नीचेनी दश शिक्षा संपूर्ण रीते पाळवानी होय छे अने गृहस्थने वनी शके तेटला प्रमाणमा ते पाळवानी होय छे. 'धर्मनी दश शिक्षा' १ क्षमा-अपराधि जीवोनुं अंतःकरणथी पण अहित नहि इ-- च्छता जेम स्वपरहित थइ शके तेम सहनशीलता पूर्वक उचित प्रवृत्ति या नित्ति करवी अने जिनेश्वर प्रभुना पवित्र वचननो तेवो मर्म समजीने अथवा आत्मानो एवोज धर्म समजीने सहज सहनशीलता धारवी ते. २ मृदुता-जातिमद, कुळमद, वळमद, प्रज्ञामद, तपमद, रुपमद, लाभमद अने ऐश्वर्यमदन स्वरुप सारी रीते समजी तेथी थती हानिने विचारी ते संबंधी मिथ्याभिमान तजीने नम्रता याने लघुता धारण करवी. गुणगुणीनो द्रव्य भावथी विनय साचववो, तेमनी उ...
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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