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________________ चारे # च । - . % 99. १०४ चौथा ब्रतमें श्रावक मर्याद उपरांत मैथुम सेवा त्याग करे। : ५ पांचमां ब्रतमें श्रावक मर्यादा उपरांत परि यह राखवाका त्याग करे। .. . .. ६ छट्ठा ब्रतके विषै श्रावक दशौं दिशिमें मर्यादा . उपरान्त जावाका त्याग करे। :७ सातवां ब्रतके विषै श्रावक उपभोग परिभोग का बोल २६ छाबोस के जिणारी मर्यादा उपरांत त्याग करे तथा पन्दरह कर्मादानको मर्यादा उपरांत त्याग करे।। भाठमा व्रतके विषे श्रावक मर्यादा उपरांत अनर्थ दण्डका त्याग करे । ६ नवमां ब्रतके विषै श्रावक सामायकको मर्याद .... . करे। १० दशमां ब्रतके विषै श्रावक देसावगासी संबरको मर्याद करे। श्रावक मोसह करे। . . . १२ बारमं ब्रत श्रावक सुध साधु निग्रंथर्ने . . निर्दोष माहार पाणी आदि चउदे प्रकार - . दान देव। . २३ तेवीसमें बोले साधुजौका मंच महाव्रत: है -
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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