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________________ ( २३ ) चंद्र क्रान्ति वत सोहै हो ॥ हंस श्रेणि जाणे पंकज सेवै। देखत जन मन मोहै हो पारस० ॥ २ ॥ फटिक सिंहासग सिंह आकार। बैठ देशना देवै हो ॥ वन मृग आवै बाणौ सुणवा। जाणके सिंह ने सवै हो । , पारस० ॥३॥ चंद समो तुज मुख महा शीतल । नयन चकोर हर्षाव हो ॥ इन्द्र नरेंद्र सुरासुर रमणौ । निरखत पति न पावै हो ॥ पारस० ॥ ४ ॥ पाखंडी सरागी आप निरागो । आमसमें इमगैरी हो ॥ बैरभाव पाखंडी राखे। पिण आप त्यांरा नहीं बैगै हो ॥ पारस० ॥५॥ जिम सूर्य खद्योत उपरें । बैरभाव नहीं आण हो ॥ प्रभु पिण दूणा विधि पाखंडिया में । खद्योत सरीखा जाणे हो ॥ पा० ॥ ६ ॥ परम दयाल कृपाल पारस प्रभु । संवत उगणीसे गाया हो ॥ आसोज कृष्ण तिथि चोथ लाडनं। आनंद अधिको पाया हो॥ पारस० ॥ ७॥ श्री महाबीर जिनस्तवन । __ कपिरे प्रिया संदेशो कहै। चरम जिनेंद्र चोवीसमा जिन । अघहणावा महाबौर ॥ बिकट तप वर ध्यान कर प्रभु । पाया भव जल , तौर ॥ नहों इसो दूसरो जगबीर ॥ उपसर्ग सहिवा अडिग जिनवर । सुर गिर जेम सधौर ॥ नहीं ॥ १ ॥
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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