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________________ ( २२ ) उगणीसै आसोज उदारोरे कृष्ण चोथ गाया गुण धारोरे ॥ हुओ आनंद हर्ष आपारो ॥ प्र० ॥ ७ ॥ श्री आरिष्टनेमि जिन स्तवन । छिणगईरे। प्रभु नेमिस्वामी ॥ तु जगनाथ अंतरजामौ ॥ तु' तोरण स्युं फिस्यो जिनखाम ॥ अमृत बात करौ तें घमाम ॥ प्रभु० ॥१॥ राजिमती छांडो जिनराय ॥ शिव सुन्दर स्यं प्रीत लगाय ॥ प्रभु ॥२॥ केवल पाया ध्यान वरध्याय ॥ इन्द्र शची निरव हर्षाय ॥ प्र० ॥३॥ नेरिया पिण पामें मन सोद || तुज कल्यांगा सुर करत विनोद प्र० ॥४॥ राग रहित शिव सुखस्यु प्रीत कर्म हो वलि द्वेषरहित ॥ प्र० ॥५॥ अचरिजकारौ प्रभु थारोचरित्र ॥ हुप्रणम् कर जोड़ी नित्य ॥ प्र० ॥६॥ उगगीसै वदि चोथ कुमार ॥ नैमि जप्यां पायो सुखकार ॥ प्र० ॥७॥ श्रो पाश्व जिनस्तवन । पूज्य भीखणजी तुमारा दर्शण। लोह कंचन करे पारस काचो ॥ ते कहो कर कुण लेवे हो ॥ पारस तुं प्रभु साचो पारस । आप समो कर देवे हो ॥ पारसदेव तुमारा दर्शन । भाग मला सोडू पावै हो ॥१॥ तुज मुख कमल पास चमरावलि ।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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