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________________ ( १२६ ) उत्तर वसे जीव नवमे जीव पासव। २ कर्याको उपावता छवसे कोगा नवमे कोगा उ. छबसे नौव नबसे जौव बालव । ३ कमीका लगावता वसे कोग नवमे कोण उ० कवसे जोव नव से जीव आसव । ४ कमांको रोकता छबमे कागा नवमे कोमा उत्तर छवर जीव नवमे जीव संवर । ५ कासीको तोड़ता झवसे कोगा नवमे कोग छवमे जोव नवस जीव निर्जरा। ६ कमीको वान्धता छवमे कोण नवमे कोण छवमे जीव नवसे जीव आस्रव । ७ शसीको मुकावता इयमें कोगा नवम कोगा छवसे जीव नवमे जीव मोक्ष । ॥ लड़ी चौदसी ॥ १ अठारे पाप मेवे ते छवसे कोगा नवमे कोगा क्वमें नौव नवसें जीव प्रानव । २ पठार पाप सेवाका त्याग करे ते छवमे कोगा नवले जोगा झवसे जीव नवम जीव निर्जग ।। है मामायका व कोगा नवमें कोगा छवमें जीव नवर जीव संवर।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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