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________________ ( १२५ ) २ अधर्मास्तिकाय जीवके अजीव, अजीब छ । ३ आकाशास्तिकाय जीवक अजीव, अजीव छै। ४ काल जीवके अजीव, अजीव छ। ५ पुलास्तिकाय जीवके अजीव, अजीव छै। ६ जौवास्तिकाय जीव के अजीव, जीव के । ॥ ध्व द्रव्यपर लडीबारमी एक अनेक की ॥ १ धर्मास्ति काय एक छै के अनेक छै, एका छै, किणन्याय, द्रव्यदको एकही द्रव्य छ। २ अधर्मास्तिकाय एक छे के अनेक छै एक है, द्रव्ययको एकही द्रव्य है। ३ आकाशास्तिकाय एकके अनेक, एक छ, लोक अलोक प्रमाणे एकही द्रव्य छ। ४ काल एक के के अनेक के, अनेक छै द्रव्ययको __ अनन्ता द्रव्य छै इणन्याय । ५ पुतल एक छै के अनेक छ, अनंक छ, द्रव्य थकी अनन्ता द्रव्य छै न्याय । ६ नोव एक छै के अनेक है, अनेक छ अनन्ता द्रव्य छै दूणन्याय। ॥ लड़ी तेरमो ॥ छवमें नवसेकी चरचा । १ कमांकीकर्ता छव द्रव्यमे कोगा नव तत्वमे कोगा
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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