SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२२ ) ६ मोक्ष छांडवा जोगके बादरवा जोग, आदरवा जोग ते किणन्याय सकल कर्म खमावे जीव निरमल थाय सिद्ध हुवे इणन्याय आदरवा जोग छ। ॥ षटद्रव्यपर लडी सातमो रूपी अरूपीकी ।। १ धर्मास्तिकाय रूपौक अरूपौ, अरूपो किया न्याय पांच वर्ण नहौं पावे दूणचाय । २ अधर्मास्तिकाय रूपोके अरूपो, अरूपी किमान्याय पांच वर्ग नहीं पाव दूगन्याय । ३ आकाशास्तिकाय रूपौकि अरूपो, अरूपी किणन्याय ___ पांच वर्ण नहीं पाव इणन्याय । ४ काल रूपोक अरूपो, यरूपी किणान्याव पांच वर्गा नहीं पावे इगान्याय। ५ पुगल स्पीके अरूपी, रूपो किगन्याय पांच वर्ग पावे गणन्याय। ६ जीव रूपोंके अरूपी अरूपी किगन्याय पांच वर्गी नहीं पाये इगन्याय । ॥ छवद्रव्यपर लड़ी अाठमी सावद्य निर्वद्यकी॥ १ धर्मास्तिकाय मावद्यके निर्वा, दान नहीं अनौव है।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy