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________________ >>★ जैन गौरव स्मृतियां *><><> अहिंसा धर्म का विस्तार किया परन्तु इस अहिंसा के मार्ग में बहने वाला सबसे बड़ा प्रवाह महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध के उपदेशों का है । महावीर स्वामी ने संसार और कर्म के बन्धनों को तोड़ने के लिए तप की महिमा बताई और अहिंसा को पंचत्रतों में प्रथम स्थान दिया । इनके पहले भी हिंसा व्रत का स्वीकार चला आ रहा था परन्तु उन्होंने इसका ऐसा समर्थ उपदेश दिया कि औपनिषद और भागवत धर्म के बाहर - मनुस्मृति में वर्णित - जो द्वैधीभाव की स्थिति विद्यमान थी उससे देश के बड़े भाग का उद्धार किया । हडारों स्त्री पुरुषों ने "अहिंसा परमो धर्मः' को जीवन का महा मन्त्र बनाया | आज हिन्दुस्तान अहिंसा धर्म के आचार के द्वारा पृथ्वी के सब देशों से अनोखा दिखाई देता है यह महिमा अधिकांशतः महावीर स्वामी की है।" "इस अवलोकन का हेतु अहिंसा के सम्बन्ध में अपने देश की सच्ची ऐतिहासिक स्थिति का वर्णन करता है । यह स्थिति बहुधा अहिंसा प्रधान है और इसके परिणाम स्वरूप बंगाल, पंजाब, काश्मीर और सिंन्ध को छोड़कर हिन्दुस्तान के बड़े भागने खास कर द्विज वर्णों ने हिंसा छोढ़दी है इसदिशासबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य जैनधर्मं ने अहिंसा को जो प्राधन्य है वह सुप्रसिद्ध है । निरामित्रता जैन - संस्कृति प्रधानतया अहिंसा से ओतप्रोत है इसलिए जैन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अहिंसा की झाँकी दिखलाई पड़ती है । आहार-विहार, रहनसहन, उद्योग, कला, समाज व्यवस्था, राज व्यवस्था आदि सव प्रदेशों में इसी महान सिद्धान्त का ध्यान रखा गया है । जैनों का आहार-विहार संसार की अन्य समस्त जातियों के मनुष्यों के आहार-विहार की अपेक्षा कहीं अधिक अहिंसक और सात्विक है । जैन पूर्णतया निरामिष भोजी और मद्यपान से घृणा करनेवाले हैं । मांसाहार की बात तो दूर रही किंतु जो जमीन में कन्द्ररूप से उत्पन्न होनेवाली वनस्पतियाँ हैं वे भी जैन- दृष्टि से अभक्ष्य समझी जाती हैं क्योंकि उनमें अनन्त जीवों का पिंड विद्यमान है । जैन संस्कृति ने मांसाहार का बड़ी दृढता से विरोध किया है । उस XXXNOXXXX: (१२६)XXXXX000OXXX 1
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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