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________________ र * जैन-गौरव-स्मृतियां औ - बुद्ध और महावीर की समीक्षा करते हुए एक लेखक ने लिखा है बुद्ध का हृदय माता के समान कोमल और ममता मय थी जबकि वीर का हृदयः पिता के समान कठोर और हितैषी था। इस रूपक के रा इन दोनों महापुरुषों की महानता और महोपकारित का परिचय मिल ता है। . . भगवान महावीर का निर्वाण-काल प्रायः ई. पू. ५२७ माना जाता है । परन्तु श्री हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व के मतानुसार महाराजा चन्द्रगुप्त के राज्या रोहण पूर्व १५५ वर्ष महावीर का निर्वाण हुआ। इस पर से जेकोबी. महोदय ने यह कहा है कि यह प्रसंग' ई. पू० ४७७ में वना होना चाहिए। 'माजिम निकाय के सामगाम सूत्र से स्पष्ट है कि जिस समय बुद्ध सांसगाम में थे. उस संसंयं ज्ञातृप्रत्र.महावीर पावा में सुक्त हुए थे। महावीर निर्वाण, के कुछ समय पश्चात बुध्द दिवंगत हुए थे। महावीर का निर्वाणं, कार्तिक कृष्णा अमावस्या के दिन हुआ था । उस दिन लिच्छवी राजाओं ने निर्वाण के स्मरणार्थ अपने नगर में दीपमालाएँ जलाई थी इसलिए दीपमालिका पवं प्रचलित हुआ ... ..... महावीर निवाण से वीर संवत् चला आता है लोकमान्य तिलक ने बडौदा में जैन श्वे कॉन्फेन्स में भापण देते हुए बताया था कि- इतिहास से इस वात का पता चलता है कि धर्माचार्य के नाम से संवत् 'चलाने की पहल जैनों ने की है।" ..... .. धर्म और बौद्धधर्म.. ... .. जैनधर्म और बौद्धधर्म में अनेक समान तत्व हैं। इस समानता के कारण पाश्चात्य विद्वानों और इतिहासकारों में विविध भ्रमपूर्ण मान्यताएँ भी इन दोनों धरों के सम्बन्ध में फैली हैं। किसी ने जैनबौद्ध को एक ही माना, किसी ने-जैनधर्म को बौद्धधर्म की शाखा माना तो किसी ने बौद्धधर्म को जैन धगे की शाखा के रूप में माना । कोल.व्रक, प्रिन्सेप, स्टिवन्सन, ओ० टॉसस अादि की मान्यता थी कि वौद्धधर्म जैनधर्म से उत्पन्न हुआ है । महावीर के १. प्रधान शिष्य गौतम को ही गौतमवुद्ध मानकर सम्भवतः ये लोग इस अनुमान - धर्म की शाखा
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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