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________________ जैन - गौरव-स्मृतियां:" निले (२) महावीर ने अपने प्रचार कार्य में भी आत्म दृष्टि को प्रधानता दी । उनका उपदेश मुख्य रूप से त्याग और तप को लेकर होता था । व्यक्ति के उत्थान की ओर उनका विशेष लक्ष्य था अतः उन्होंने अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाने की ओर उतना ध्यान नहीं दिया जितना कि अपने अनुयायियों की आत्म शद्धि की ओर। तप त्याग मय उपदेश के आचरण की कठिनता के कारण महावीरें" के अनुयायियों की संख्या इतनी अधिक न बढ़ सकी जितनी कि बुद्ध के अनुयायियों की । बुद्ध ने अपने अनुयायियों के लिये सरल मार्ग निर्धारित किया । वह कम श्रमसाध्य था अतः जनता का झुकाव उस और अधिक हुआ । + ܀ 1. १ महावीर के संघ में प्राचार विषयक कठिनता थी परन्तु साथ ही वह स्थिरता का कारण भी बनी जबकि बुद्ध के संघ में सरलता थी इसी लिए वह अधिक काल तक स्थिर न रह सका । अनुयायियों की अधिक संख्या होने पर भी बुद्ध धर्म भारत से लुप्त होगया और महावीर के अनुयायियों की संख्या अपेक्षाकृत कम होने पर भी वह आज तक भारत भूमि में प्रभाव पूर्ण और गौरव पूर्ण स्थिति में बना रहा, यही यह सूचित करता है कि महावीर ने अपने संघ में प्रभाव की अपेक्षा स्थायित्व पर विशेष भार दिया । + #PA *** ** .... (३) बुद्ध ने केवल जीवन सुधार पर लक्ष्य दिया, उन्होंने आत्मा, स्वर्ग' नरक, आदि तत्त्वज्ञान की ओर उपेक्षा बुद्धि रक्खी । उन्होंने संसार के दुखों और उनसे मुक्त होने के लिए जीवन को संयामित बनाने पर जोर दिया | . यह जीवन सुधार लिया तो भविष्य भी सुधर जायगा । बात तो ठीक थी; परन्तु बुद्धि की जिज्ञासा को इतने से संतोष नहीं होगा। महावीर ने इस जीवन के सुधार पर भी लक्ष्य दिया और आत्मा-परमात्मा, स्वर्ग-नरक आदि तत्त्वों का भी वैज्ञानिक निरिक्षण किया । इससे मानव के मन को भी संतोष हुआ और बुद्धि को भी । इससे वह इस जीवन के साथ ही साथ T 'भावी जीवन को भी सफल बनाने में समर्थ हुआ । +1 *** F で 13 1.. प्रोफेसर विन्टरनिट्स ने कहा है कि बौद्धों की अपेक्षा विशेष तीव्र स्वरूप में जैन धर्म ने त्याग धर्म पर और संघ के नियमन के प्रकारों पर भार दिया है । श्रीबुद्ध की अपेक्षा श्री महावीर ने तत्त्व ज्ञान की एक अधिक से अधिक विकासित पद्धति का उपदेश दिया है C ZRENIX (११०):XXXXXXXXXXR KUXXX
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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