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________________ जैन-गौरव-स्मृतियां के फोजमलजी एवं'चुन्नीलालजी नामक दो भाई और थे। श्री जवानमलजी के जीवराजजी कुन्दनमलजी, बस्तीमलजी, हीराचन्दजी एवं सोहनलालजी नामक पांव पुत्र हुए । इन में श्री सोहनलाल जी का स्वर्गवास हो चुका है। श्री चुन्नीलालजी के नेमीचंदजी, चंपालाल जी और मांगीलालजी नामक तीन पुत्र है. श्री बुन्दनमल ( जवानमली के द्वितीय पुत्र ) के अन्नराजजी, विमलचंदजी, बसन्तराजजी एवं गोतमराजजी नामक चार पुत्र हुए। श्री बस्तीमलजी के अमृतलालजी, चंदनमलजी, प्रेमरतननी नामक तीन पुत्र हैं श्री हीराचंदजी के एक पुत्र है। इस प्रकार से यह लोढ़ा परिवार सद्व एवं सुखी है, तथा धर्म की ओर भी पूर्ण अभिरुचि है। आप सब बन्धु अपने २ व्यवसाय में व्यस्त हैं। Kसेट माणकचंदजी वेताला मद्रास जन्म सं० १६६५ फाल्गुन पूर्णिमा । श्राप श्री सेठ अमरचंदजी के दत्तक. पुत्र हैं । २-३० वीरपन स्ट्रीट साहूकार पेठ पर अपनी “देवीचंद माणकचंद" के नाम से फर्म स्थापित कर हीरे जवाहरात का व्यवसाय चालू किया । न केवल आप व्यवसायिक कायों में ही व्यस्त रहते है अपितु सार्वजनिक कार्यों के प्रति भी आपः सक्रिय रहते हैं । और हजारों रुपये धर्म कार्य एवं जातीय सेवा में लगाते रहते हैं... श्री सेठ अमरचंदजी नागौर में धार्मिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं। श्री माणकचंदजी के गौतमचंदजी और हरिश्चंद्रजी नामक दो पुत्र है। जो होनहार एवं वुद्धिमान युवक हैं। ★सेठ हीराचंदजी चोरड़िया-मद्रास जन्म सं० १६५७ फाल्गुन बुद ७ का है । व्यवसायिक महत्वा कांक्षा से आप मद्रास चले आए और २१स्वीरपन स्ट्रीट साहुकार पेठ पर अपनी फर्म. सिरेमल हीराचन्द स्थापित कर मशीनरी की एन्जेसी ले व्यवसाय प्रारम्भ कर किया । एवं अच्छी सफलता प्राप्त की । जैसे आपने धन सञ्चय किया वैसे ही दान भी करते हैं । आपने मूल निवास स्थान पर श्री मोहनलालजी श्री खेमराजजी: माणकचन्दजी के सहयोग से ११०००) की लागत का एक तालाब बनवा कर-जनहित का कार्य किया जैन स्कूल में २१००) का कमरा बनवाया है। आपके अमरचन्दजी, तेजराजजी, प्रकाशचन्द्रजी, महावीरचंदजी एवं उत्तमचंदजी नामक पांच पुत्र है इनमें श्री तेजराजजी के एक बालक हैं । आप पांचों बन्धु उत्साही मिलनसार एवं प्रेमी युवक है । तार का पता नोखावाला एवं टेलीफोन नं० ५५०४१ । *सेठ केवलचंदजी बरमेचा-मद्रास . श्री सेर केवलचंदजी धर्मपरायण उदार हृदय के दयालु सज्जन है अपनी व्यापारिक बुद्धि से आपने अच्छी उन्नति करली है । आपके - धर्मीचंदजी नाम
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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