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________________ - - * जैन-गौरव-स्मृतियों : सुपुत्र सेठ सरदारमलजी तथा सेठ हजारीमलजी हैं। आप दोनों ही बड़े उदार .. और मिलनसार स्वभावी हैं। धार्मिक कार्यों में उदारता पूर्वक खर्च करने में ... विशेष रुचि है। सेठ सरदारमलजी के श्री रमणलालजी, श्री घमंडीलालजी तथा बस्तीमलजी . नामक ३ पुत्र हैं। तथा सेठ हजारीमलजी के समर्थमलजी नामक पुत्र हैं। .. अहमदाबाद मस्कति मार्केट में 'लक्ष्मणदास सियाजीराम" के नाम से कपड़े का । व्यवसाय होता है । अहमदाबाद की प्रतिष्ठित श्रीमंत फर्म में आपकी गिनती है। इस परिवार का मूल निवास स्थान हांडीजा ( सांचोर-मारवाड़ है). * सेठ लक्ष्मणदासजी सेजरामजी, अहमदाबाद । सेठ लक्ष्मणदासजी सेजरामजी का मूल निवास स्थान बालोतरा (मारवाड़) है। ३० वर्षों से हांडीजा ( सांचोर मारवाड़ )निवासी सेठ सरदारमलजी व हजारी. . मलजी भंसाली आपके साझीदार हैं। दोनों ही परिवरों के मुखियाओं की देख रेख में यह फर्म विशेष तरक्की पार ही है। . अहमदाबाद की सुप्रसिद्ध बड़ी कपड़ा व्यापारियों में इस फर्म का अच्छा . स्थान है । फर्म की ओर से समय समय पर धार्मिक कार्यों में बड़ी उदारता पूर्वक द्रव्य लगाया जाता है। सेठ अनराजजी आबर-खोखरा (मारवाड़) . स्व० सेठ किशनमल के सुपुत्र श्री अनराजजी का जन्म सं० ४६७४ मिगसर सुदी ४ का है। आप एक योग्य व्यवस्थापक, कुशल नियोजक और बुद्धिमान सज्जन है। आप ठि० खोखरा के कामदार हैं। अपनी तरदर्शिता और कार्य कुशलता से ठिकाने को अंचे रुतबे पर पहुंचा दिया। आपके पिता श्री ने भी उक्त ठिकाने का कार्य करते हुए अच्छा नाम कमाया । किसानों प्रति आपका रुख जैसा अच्छा है वैसे ही श्री ठाकुर साहब भी आपके कार्यों से पूर्ण सन्तुष्ठ हैं । श्री गणेशमलजी और जवरीलाल नामक आपके दो सुयोग पुत्र हैं। - श्री किशनमलजी अनराजजी नामसे लेनदेन व सर्राफी का काम भी होता है । . *सेठ धूमरमलजी बाफणा -गोड़ नदी (पूना) । आपका शुभ जन्म सं १९६८ । पिता का नाम श्री कुन्दनमलजी । सार्वजनिक सामाजिक कार्यों में आप पूर्व अभिरूचि से भाग लेते रहते हैं । आप सिद्धान्तशाला अहमदनगर के सभापति एवंगोड़ नदी पांजरा पोल के सञ्चालक हैं। आपने चिंचवड़ विद्यामन्दिर में एक कमरा बनवाया । आपका परिवार गौरवशाली है। आपके यहां साहुकारी कपड़ा कमीशन एजेण्ट तथा लेन देन व्यवसाय श्री कुन्दनमल घृमरमल बाफणा" के नाम से होता है । आप बार्शी बिजली कम्पनी के डायरेक्टर भी हैं। आपके सुपुत्र श्री सौभाचन्दजी मिलन सारं तथा प्रगतिशील । विचारों के युवक हैं।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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