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________________ ७४० + - * . जैन गौरव स्मृतियां मलजी व मनसुख दासजी विद्यमान हैं। आप बड़े. ही उत्साही व व्यापार कुशलं है। इस परिवार की मारवाड़ नाशिक खानदेश आदि प्रदेशों में अच्छी प्रतिम्ठा है। आपका वर्तमान निवास महामन्दिर, जोधपुर में है। आपको "भीवराज देवीचन्द" के नाम से मुंबई, "भीवराज कानमल" के नाम से नांदगांव व "जुगराज केशरी मल" के नाम से येवले में व्यापार चलता है। ★सेठ रूपचन्दजी वीरचन्दजी एन्ड कं. बम्बई जैन श्वेताम्बर समाज के पाल गोता चौहान श्री सेठ तिलोकचन्दजी के पुत्र श्री रुपचन्दजी का जन्म सं० १६५६ मिगसर वदी १३ का है। आपकी सामाजिक शिक्षा सम्बन्धी रुचि प्रशंसनीय है। श्री महावीर जैन गुरुकुल सम्पगंज के आप आजीवन सदस्य, हैं। आप एक व्यवसाय कुशल, मिलनसार एवं उदार हृदय सज्जन हैं। आपका मूल निवास स्थान सिरोही स्टेट के अन्तर्गत स्वरूप गंज है। श्रीवीरचन्दजी, कान्तिलालजी, शान्तिलालजी एवं गोपीचन्दजी नामक आप के चार सुयोग्य पुत्र हैं । श्री रुपचन्द वीरचन्द एण्ड को के नाम से बम्बई में विगत में ५० वर्षो से आपकी फर्म से सर्राफी आर्डर के अनुसार जेवरात और कमिशन एजेण्ट का काम प्रामाणिकता से होता है। * श्रीलाला मुसद्दीलाल ज्योतिग्रसाद जैन बम्बई, गर्ग (अग्रवाल जैन) गोत्रोत्पन्न श्री ला. मुसद्दीलालजी के पुत्र ज्योति प्रसाद जी, श्री जग ज्योतिसिंहजी एवं श्री मलखानसिंहजी वर्तमान में उपरोक्त फर्म का संचालन बड़ी योग्यता से कर रहे हैं । आप तीन सहोदरों का प्रेम आदर्श एवं अतु करणीय है। जिस मिलन सारिता और सहकारिता से आपका कार्य हो रहा है उससे आपका व्यवसाय दिन प्रति दिन उन्नति पर है। आप बन्धु उदार, हंसमुख और मिलनसार प्रकृति के सज्जन हैं। श्री लाला जगज्योतिसिंहजी के श्री प्रकाश और सुरेशचन्द्र और लाला मल खानसिंहजी के जयप्रकाश नामक पुत्र है । आपका यह परिवार मेरठ जिले के अन्र्तगत बड़ौत ग्राम निवासी है। मेसर्स लाला मुसद्दीलाल ज्योतिप्रसाद जैन नामक फर्म प र कपड़े और लेस का सुविस्तृत और सुव्यवस्थित व्यवसाय होता है । फर्म की खा देहली में लाज मुसद्दीलाल मलखानसिंह जैन के नाम से है। *श्री सेठ अचलदासजी सिंघवी, वम्बई जाति, समाज और धर्म सेवा परायण श्री सेठ अचलदासजी का जन्म सं. १५८ का है। श्री वर्धमान बोर्डिंग सुमेरपुर के आजीवन सदस्य एवं जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स, पोरवाल संघ सभा गई अचलगढ़ श्वेताम्बर नीर्थ कमेटी के - - - श्रा
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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