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________________ C >> जैन- गौरव स्मृतियां समकालीन धर्मप्रवर्तक भगवान महावीर के समकालीन धर्मप्रवर्तकों में सर्वाधिक प्रसिद्ध और प्रभावशाली गौतम बुद्ध थे। ये बौद्ध धर्म के आदि प्रवर्तक हैं । इन्होंने भी । तत्कालीन यज्ञों में होनेवाली हिंसा और ब्राह्मणों के वर्णाभिमान के विरुद्ध प्रबल आन्दोलन किया । उस समय के हिंसक यज्ञों और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के विरोध में तीव्र क्रान्ति पैदा करनेवाले दो ही महापुरुष हुए भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध । इन दोनों महापुरुषों ने तत्कालीन धार्मिक क्षेत्र में नवीन ६. क्रान्तिमय विचार-धारा को जन्म दिया । बाह्म - क्रियाकाण्डों और वैदिक ब्राह्मण पुजारियों के चक्कर में फँसी हुई जनता को आत्म-धर्म का पाठ सिखाने के लिए इन दोनों महापुरुषों ने प्रबल पुरुषार्थ किया है । धार्मिक क्षेत्र में से हिंसा को दूर कर देने का पुनीत श्रेय इन दोनों महान विभूतियों को ही है । महात्मा बुद्ध के सम्बन्ध में विशेष वर्णेन करना है, अतः उनका स्वतंत्र रूप से अगले प्रकरण में उल्लेख करेंगे । बुद्ध के अतिरिक्त इस उस समय निम्न लिखित पाँच और प्रसिद्ध मतप्रवर्तक हुए: (१) पूरण कस्सप (पूर्ण काश्यप) (२) ककुद कात्यायन (३) अजीत केश कम्बजी (४) मंखलि पुत्र गोशाल ( मस्कीरन गोशाला ) (५) संजय वेलट्ठि पुत्त इन धर्माचार्यों का और इनके सिद्धान्तों का बौद्ध ग्रन्थों में नामोल्लेख पूर्वक निरुपण किया गया है जबकि जैन ग्रन्थ सूत्रकृतांग में नामोल्लेख के बिना ही इनके मतों का वर्णन किया गया है। इन धर्मप्रवर्तकों के मन्तव्यों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है: क्रियावाद के रूपक माने जाते हैं । इनके सिद्धान्त का वर्णन इस प्रकार मिलता है: - " करते कराते, छेदन करते कराते, पकाते पकवाते, शोक करते परेशान होते, परेशान कराते, चलते चलाते, प्राण मारते, विना दिये लेते, सेंध लगाते, गाँव लूटते, चोरी करते, बटमारी करते, परस्त्री गमन करते, झूठ बोलते हुए xxxxxxxxXXX(?-?)XXXXXXXXXXX पूरन कस्सप '
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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