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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां * भगवान महावीर और उनके पाअपने संघ में व्यावस्था की गई अदितीय क्षमा भगवान् महावीर के शासन के रूप में एक हो गई। केशि-गौतम संवाद से इस बात पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। इस तरह भगवान् महावीर ने पंचयाम मय धर्म का उपदेश दिया और अपने संघका व्यवस्थित विधान बनाया। । भगवान महावीर में उपदेश प्रदान करने की जैसी अनुपम कुशलता थी वैसी ही अपने अनुयायियों की व्यवस्था करने की भी अद्वितीय क्षमता 'थी। भगवान के द्वारा अपनें संघ की जैसी व्यवस्था की गई है वैसी व्यवस्था अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होती। अपने संघ में त्यागियों और गृहस्थों के पृथक पृथक् नियमों और उनके पारस्परिक सम्बन्ध के विधि-विधानों के द्वारा भगवान महावीर ने अपने संघ को ऐसी शृंखला का रूप दिया है जो कभी ' छिन्न-भिन्न नही हो सकती। यह उनकी व्यवस्था-शक्ति की अनुपमता का सूचक है। पच्चीस सौ वर्ष पहले के बनाये हुए विधि-विधान आज भी उसी रूप में चले आ रहे हैं यह इसी व्यवस्थित संघ-व्यवस्था का परिणाम है। संघ-व्यवस्था की इस महान् शक्ति के कारण जैन धर्म अनेक संकट-कालों में से गुजरने पर भी सुरक्षित और सुव्यवस्थित रह सका है। प्रोफेसर ग्लाजेनाप ने भगवान् की संघ-व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए लिखा है किः "महावीर के धर्म में साधु-संघ और श्रावक-संघ के बीच जो निकट .. का सम्बन्ध बना रहा उसके फलस्वरूप ही जैन धर्म भारतवर्ष में आज तक टिका रहा है। दूसरे जिन धर्मों में ऐसा सम्बन्ध नहीं था वे गंगा भूमि में बहुत लम्बे समय तक नहीं टिक सके।" महावीर में योजना और व्यवस्था करने की अद्भुत शक्ति थी। इस शक्ति के कारण इन्होंने अपने शिष्यों के लिए जो संघ के नियम बनाये वे अव भी चल रहे हैं। महावीर के समय में स्थापित साधु-संघों में सब जैन साधुओं को.व्यवस्थित नियमन, में रखने का बल अवं भी विद्यमान है, ऐसा जब हम देखते हैं तो काल-बल जिस पर जरा भी असर नहीं कर सकता ऐसा स्वरूप पार्श्वनाथ के साधु-संघ को देनेवाले __ इस महापुरुष को देख कर आश्चर्यचकित हुए विना नहीं रहा जा सकता है।" . महावीर की संघ-व्यवस्था का कितना भव्य स्वरूप है। 10.
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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