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________________ 6०५ जैन-गौरव-स्मृतियाँ प्रवृत्तिशील युवक हैं। श्री सेठ माणक चन्दजी के समीरमलजी तथा ताराचन्दजी .. नामक दो योग्य पुत्र हैं। स्वर्गीय श्री सेठ रतनचन्दजी अमरचन्दजी मुणोत, रालेगांव श्री अमरचन्दजी मुणोत के सुपुत्र श्री रतनचन्दजी का जन्म सं० १९४० । मार्गशीर्ष कृष्णा ५ को हुआ | आप शान्त और गम्भीर स्वभाव के उदार, धर्मरत, समाज सेवक, उद्योग प्रिय पुरूष थे। : ... ... ....... .. आप मारवाड़ी, मराठी, गुजराती, हिन्दी . . . एवं उर्दू पांच भाषाओं के ज्ञाता थे। . धर्म ग्रन्थों के स्वाध्याय में तो हमेशा . तल्लीन रहते थे । इसके अतिरिक्त ज्योतिष एवं आयुर्वेद शास्त्र के भी आप अच्छे ज्ञाता थे। आपको खेती ही परम प्रिय थी अतः आपने साहूकारी का धन्धा बन्द कर कृषि व्यवसाय की ओर ध्यान दिया आपके २२०० एकड़ जमीन थी जिसमें स्वयं काश्त करवाते थे । जीवन में कई वार नगर भोज और आखिरी बार चार रोज पूर्व आपने ८ हजार आद. मियों को भोज दिया ।आपको आजीवन घुड़सवारी का शोक रहा उसकी पुति के लिये आपने कई बार काठियावाड़ से घोड़े मंगवाये। अपनी माताजी की स्मृति में रालेगांव में एक कन्याशाला वनवाई । समाज कार्य के लिये आपने पीपाड़ सिटी (मारवाड़) का मकान दे दिया ( पाथर्डि परीक्षा बोर्ड को रु ७००७ की मदद दी। पशु पक्षियों के लिये अन्त समय में १०००) का दान दिया। आपके लक्ष्मीवाई और जड़ावबाई नामक दो कन्यायें हुई परन्तु पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई । आपने हीराचन्दजी मुणोत को गोद लिया परन्तु अन्त में पिता पुत्र में स्नेह नहीं रहा अतः अपनी आधी जायदाद श्री हीराचन्दजी को देकर अलग कर दिया । बाकी आधी स्टेट बक्षीस पत्रों द्वारा अपने दोहित्रों एवं सगे सम्बन्धियों में वांट दी । आप संवत् २००७ की चैत्र शुक्ला ६ नवमी को दिवगत हुए। ... * सेठ फतेहलालजी-मालूमाले गाँव खींचन (मारवाड़) निवासी सेठ मुल्तानचन्दजी व्यापारार्थ मालेगांव क्यास्प... आए । यहाँ से आपके पुत्र धनराजजी व फतेहलालजी ने माले गाँव शहर में आरक "जवाहिरमल फतेहलाल" नामक फर्म स्थापित कर कपड़ा तथा साहुकारी का काम ..
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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