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________________ 吴小中大**柔美未来業 美柔柔柔柔柔***** जैन-गौरव-स्मृतियाँ ६६७ सं० १९७२ में आपने साहुकारी व्यवसाय बन्द कर कृषि तथा वागात् की ओर निवेष लक्ष्य दिया। आपका सुविस्तृत उद्यान लगभग १७५ एकड़ भूमि में है। यहाँ से सैकड़ों वैगन फ्रूट्स बन्बई एवं गुजरात प्रान्त में भेजा जाता है। आपने अपने यहाँ लेमन ज्यूश और और ज्यूस बड़े प्रमाण में बनाने का आयोजन किया है। और इस कार्य के लिए. १२० एकड़ भूमि में नींबू के १२ हजार झाड़ लगाये है। इन तमाम कार्यों में आपके बड़े पुत्र बंशीलालजी का पूर्ण सहयोग रहता है । बम्बई प्रान्त के फलों के बगीचों में आपका बगीचा सबसे बड़ा माना जाता है। सेठ माणकचन्दजी के इस समय वंशीलालजी शिवलालजी तथा शान्तिलालजी नामक तीन पुत्र हैं। श्री बन्सीलालजी का जन्म सं० १६१५ का है। आपने लेमन तथा अरेञ्ज ज्यूस के लिए पूना एग्री कल्चर कॉलेज से विशेष ज्ञान प्राप्त किया है। आपके लधुभ्राता शिवलालजी ने एग्रीकल्चर कॉलेज से केमिस्ट्री का ज्ञान प्राप्त किया और शान्तिलालजी भी मैट्रिक पास करके इसी एग्रीकल्चर लाईन में काम करते हैं । सेठ साहब ने नाशिक जिले के यवले तालुके में २-२॥ हजार एकड़ जमीन खरीद का मोसम्बी लान्टेशन का काम जारी किया है। ओसवाल जाति में आधुनिक पद्धति से खेती का काम करने वाले आप ही पहले सज्जन हैं। ★सेठ रंगलालजी बंसीलालजी रेदाशनी नसीराबाद (खानदेश) आज से लगभग ११५ वर्ष पूर्व सेठ अमरचन्दजी अपने निवास स्थान पीपाड़ से व्यापार के निमित्त नसीराबाद (जल गांव के समीप ) आये आपके पुत्र मानमलजी तथा पौत्र रामचन्द्रजी हुए। सेठ रामचन्द्रजी मिलनसार पुरुष थे आपके द्वारा दुकान के व्यापार में अच्छी उन्नति हुई। आपके पुत्र मोतीलालजी हुए । सेठ मोतीलालजी रेदासनी-का जन्म सं० १६३६ में हुआ। आप स्वभात्र के सरल तथा मदु प्रकृति के पुरुप थे । खानदेश के प्रोसवाल समाज में आपका अपना विशिष्ठ महत्व था । सं० १६६० में आपका देहावसान हुआ। आपके चार पुत्र हुए जिनके नाम क्रमश ये हैं । बाबू रंगलालजी, बंशीलालजी, बाबूलालजी तथा । प्रेमचन्द्रजी। आप चारों बन्धुओं का प्रेम प्रशंसनीय है। आपके यहाँ आसामी लेन. देन तथा आढ़त का काम होता है *सेठ लादूरामजी मनोहरमलजी बोथरा, इगतपुरी (नासिक) सहोदर बन्धु सेठ मोतीचन्दजी और मनोहरमलजी सम्बत १९३४ में व्यापार के लिए इगतपुरी आए एवं फर्म स्थापित की। सेठ मोतीचन्दजी १६७५ में तथा सेठ मनोहरमलजी १६५७ से स्वर्गवासी हुए । सेठ मोतीचन्दजी के लादरामजी एवं मूलचन्दजी नामक दो पुत्र हुए । लादूरामजी अपने काका मनोहरलालजी के यहाँ गोद गए।सेठ लादूरामजी का जन्म १६४५ में हुअा। आप योग्य एवं प्रतिष्ठित सज्जन हैं। आपकी नासिक व खानदेश की अोसवाल समाज में अच्छी प्रतिया। अापके दो पुत्र हैं। श्रीमूलचन्दजी का जन्मसं० १६५४में हुआ आपके भी दो पत्र ।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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