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________________ * जन-गौरव-स्मृतियां ★ IN IN .2 0 10 अर्थात्-"महावीर ने डिंडम नाद से आर्या वर्त में ऐसा संदेश उद्घोषित किया कि धर्म कोई सामाजिक रूढ़ि नहीं है परन्तु वास्तविक सत्य है । मोक्ष बाह्य क्रिया काण्डों के पालन मात्र से नहीं मिलता है परन्तु सत्य धर्म स्वरूप में आश्रय लेने से मिलता है। धर्म में मनुष्य मनुष्यके बीच का भेद नहीं रह सकता है। कहते हुए आश्चर्य होता है कि महावीर की ये शिक्षाएँ शीघ्र ही सब बाधाओं को पार कर सारे आयावर्त में व्याप्त होगई।" कवि सम्राट् के इन वाक्यों से भगवान महावीर के उपदेशों का क्या पुण्य प्रभाव हुआ सो स्वयमेव व्यक्त हो जाता है । भगवान् महावीर पूर्ण वीतराग थे अतः उनकी दृष्टि में राजा-रंक . का, गरीब-अमीर का, धनी-निर्धन का, ऊँच-नीच का कोई भेद नहीं था। वे जिस निस्पृहता से रंक को उपदेश देते थे उसी निस्पृहता से राजा को भी उपदेश देते थे। वे राजा आदि को जिस तत्परता से उपदेश देते थे उसी तत्परता से साधारण जीवों को भी उपदेश देते थे। यही कारण है कि उनके संघ में जहाँ एक ओर बड़े २ राजा राज्य का त्याग कर अनगार बने हैं वहीं दूसरी ओर साधारण, दीन, शूद्र और अति शूद्र भी मुनि बन सके हैं। भगवान् के अपूर्व वैराग्य का बड़ा गहरा प्रभाव पड़ताथा । इसीलिए बड़े २ राजा, राजकुमार, रानियाँ, सेठसाहूकार और उनके सुकुमार भगवान् के पास दीक्षित हो गये थे। सोग विलासों में सर्वदा बेभान रहने वाले धनी नवयुवकों पर भी भगवान् के वैराग्य और त्याग का गहरा असर पड़ा। राजगृही के धन्ना और शालिभद्र जैसे धनकुबेरों के जीवन परिवर्तन की कथाएँ कट्टर से कट्टर भोगवादी के हृदय को भी हिला देती हैं । बड़े २ राजा • महाराजाओं के सुकुमार पुत्रों को भिन्नु का बाना पहने हुए, तप और त्यागी की साक्षात् जीती जागती मूत्तिं वने हुए और गाँव गाँव में अहिंसा दु'दुभी बजाते हुए देखकर भगवान् के महान् प्रभाव से हृदय पुलकित हो उठता है। 'मगध सम्राट श्रोणिक की उन महारानियों को जो पुष्प शय्या से निचे पैर तक नहीं रखती थीं जब भिक्षाणियों के रूप में घर-घर भिक्षा माँगते हुए, धर्म की शिक्षा देते हुए देखते हैं तो हमारा हृदय एकदम "धन्य धन्य" पुकार है। यह था भगवान् महावीर के उपदेशों का चमत्तारी पुण्य प्रभाव।।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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