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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां - ....... . अश्वमेध और अज़ामेध होने लगे । अजामेध में से अन्त में यवों से यज्ञ की समाप्ति मानी जाने लगी। इस प्रकार धर्म शुद्ध होते गये । महावीर स्वामी के समय में भी ऐसी ही प्रथा थी ऐसा उत्तराध्ययनं सूत्रं में आये हुए विजय घोष और जयघोष के संवाद से मालूम होता है। इस संवादं में यज्ञ का यथार्थ स्वरूप स्पष्ट किया गया है । वेद का सच्चा कर्तव्य अग्नि होत्र है। अग्नि होत्र का तत्त्व भी आत्म बलिदान है। इस तत्त्व को काश्यप धर्म अथवा ऋषभ देव का धर्म कहा जाता है । ब्राह्मण के लक्षण भी अहिंसा धर्म विशिष्ट दिये गये हैं। बौद्ध धर्म के ग्रन्थों में भी ब्राह्मण के ऐसे ही लक्षण दिये गये हैं। गौतमबुद्ध के.. समय. में ब्राह्मणों का जीवन इसी ही तरह का होगया था। ब्राह्मणों के जीवन में जो त्रुटियाँ आगई थी वे बहुत बाद में आई थी और जैनों ने ब्राह्मणों की त्रुटियों को सुधारने में अपना कर्तव्य बजाया है। यदि जैनों ने इस त्रुटि को सुधारने का कार्य न किया होता तो ब्राह्मणों को अपने हाथों पर काम करना पड़ता।" . ..... .इसी तरह लोकमान्य तिलक ने भी कहा है कि जैनों के अहिंसा परमो धर्मः के उदारसिद्धान्त ने ब्राह्मण धर्स पर चिरस्मरणीय छाप डाली है । यज्ञयागादिक में पशुओं की हिंसा होती थी । यह प्रथा आज कल बंद होगई हैं ।यह जैन धर्म की एक महान् छाप ब्राह्मणं धर्म पर अर्पित हुई है । यज्ञार्थं होने वाली हिंसा से आज ब्राह्मण मुक्त हैं यह जैन धर्म का ही पुनीत प्रताप है। . . . . ... .. ... .. .. :: भगवान् महावीर के उपदेश, कार्य और पुण्य प्रभाव : काः उल्लेख करते हुए कवि सम्राट डॉ. रविन्द्र नाथ टेगौर ने कहा है:--... ... Mahav.ra proclaimed in India the me sage of salvation that.religion is reality. and not a. mere ..convention that : salvation comes from taking refugh. inthat: true religion and not from observing that-,external- ceremonies of the community that religion can not re.ard . any barries-between man and man, as an external verity. Wonderoụs to say, this teaching rapidly overtopped the barries of the races abiding instinct and conquered the whole.country.
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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