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________________ जैन-गौरव-स्मृतियां सेठ सोहनलालजी दूगड़, जयपुर 90 11 : जन्म सं० १६५२ का जेठ बढी १३ । मूल निवास स्थान फतेहपुर (सीकर आप वायदे का व्यापार करते हैं । इस विषय में आप बड़े अनुभवी व्यक्ति है, जयपुर के ही नहीं अपितु सारत के एक सुप्रसिद्ध एवं प्रमुख सटोरिया । व दानी है। आप सही अर्थों में भाग्यशाली हैं । लक्ष्मी का जिसे मोह नहीं पर लक्ष्मी छाया की तरह जिनके पीछे २ फिरत' है आपको दानवीर कहा जाता है पर ऐसा लगता है ये दान की साकार सजीव मृत्ति है या दान इनसे साकार है । जब कभी अच्छा मुनाफा इया तुरन्त उलका अधिक भाग किसी शिजणशाला में दान दे देते है अापका कथन है कि यह लमी चंचल है इसे रहना है नहीं फिर इसे -- क्यों न लगाया जाट शिक्षा स्याओं के जा हायक एवं संरक्षक है। आप अपने हा तक १५.२८ लाख पयावान करके होंगे। हरिजन उत्थान. बाल व ना की तरफ आपकी विशेष चि है। फतह पुर में आप एक आदर्श र बना रहे है। .. CRE15 ' .. . . .. यह निर्विवाद सत्व .... न वीरता में छाज आपके समान दसरा व्यक्ति दे से भी नहीं मिल सकतः । पैसे से ही इनकी पूजा ही सो नहीं श्राप गंभीर विचा क और जाशील सुधार, प्रिय कार्यकर्ता है । इस नाह भारत राष्ट्र की आप एक नुपम विभूति है। श्रापकी धर्म पत्निी श्रीमती सौ. सुभदेवीजी भीमापही की तरह उदार : य एवं प्रतिलि विचारों की है। महिला समाज में पढ़ा निवारा आदि सुधार शक्षा विषयक प्रान्दोलनों में विशेष दिलचस्पी रखती वयं ने पी प्रथा का - किया है । भाषण शैली भी अच्छी है।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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