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________________ जैन-गौरव-स्मृतियों __ मन्त्री रह चुके हैं तथा सम्मेलन की कलकत्ता वर्किङ्ग कमेटी तथा नागरी प्रचारिणी सभा की प्रबन्ध कारिणी कमेटी के १६६-१६६६ के लिथे आप सदस्य निर्वाचित हुए थे । वीकानेर राज्य के साहित्य सम्मेलन के अन्तर्गत राजस्थानी साहित्य परिषद् के आप सभापति भी रह चुके हैं । "शार्दूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्य द" व राजस्थाती साहित्य परिषद् के आप कोपाध्यक्ष हैं। आपके लेख जैन व जैनेतरपत्रों में निरन्तर प्रकाशित होते रहते हैं। प्रत्येक लेख में गवेपणा शक्ति और सर्वतोमुखी मेधा का विलक्षण मिश्रण होता है। आप उच्च कोटी के बालोचक एवं सम्पादक भी हैं । "राजस्थानी" में आप सहसम्पादक रह चुके हैं वर्तमान में "राजस्थान भारती, के पाप सम्पादक मण्डल में हैं। आपने नाहटा कला भवन "की स्थापना की इसमें १५००० के लगभग हरत लिखित ग्रन्थ और ७ ०० के लगभग मुद्रित ग्रन्थ हैं तथा अन्य प्राचीन सामग्री चित्र, सिकों आदि का भी अच्छा संग्रह है । स्व० डा. गोरीशङ्करजी अोझा और मुनि जिनविजयजी । आपके साहित्यक अन्वेषण सम्बन्धी कार्यों की भूरी २ प्रशंशा की है । जैनधर्म का गहन अध्ययन और अनुशीलन कर यापने "सम्यक्त्व" नामक पुस्तक लिखी है। इस प्रकारसे नाहटाजी ने जैन साहित्य सम्बन्धी कार्य तोकिया ही साथ २ श्राप एक कुशल व्यवसायी भी हैं। बंगालप्रान्त में आपका पाट, चावल,, कपड़ा गल्ला और आदत का काम, सिलहट, घोलपुर, कामगंसी ग्वालपाड़ा अासाम बम्बई श्रादि स्थानों पर व्यवसायिक कार्य बड़ जोरों से चलता है । * सेठ रावतमलजी बोथरा-बीकानेर जन्म सं. १६२६ आश्विन शुलता ११ में हुआ । प्रारम्भ में मुनीम रहने के बाद नं. १६६६ "रावतमल हरग्यचन्द" के नाम से फर्म स्थापित की एवं महती सफलता प्राप्त की । आपका धार्मिक, गंयमी एवं सदाचार मय जीवन आदर्श है। २० वपों में व्यापार भार पुत्रों पर छोड़ कर आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहे हैं। इस प्रकार श्राप पूर्ण सुखी है। श्री हरकचन्दजी, श्री नाजमलजी. श्री हनुमानमलजी तथा श्री किशनचन्दजी के योग्य पुत्र है। श्री हरचन्दजी शिक्षित एवं कुशल व्यापारी होते हुए भी भौतिक सुखों से उदासीन रहकर, निवृतिमय जीवन बिताते हुए अपने सम्य, ज्ञान की अद्धि कर रहे हैं। श्री ताजमलजी-काकी के एक अच्छ कार्यकता है । जैनधर्म प्रचारक, सभाक, मनाप मंत्री हैं। सार्वजनिक कार्यो के प्रति पूती दिलचस्पी रखने वाले .एक मिलनसार नवीन विचारों के सज्जन है ! श्री मनुमानमलजी एक कुशल व्यवसायी तथा श्री किशनचन्दजी कलकता फर्म पर व्यापार में सहयोग करते हैं । कलकत्ते में "गवतमल हरकचन्द के नाम से ६ ग्राम हीट में कप का व्यवसाय है । तार का पता-रेवम पुशल । .. - - - -
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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