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________________ रा०व० सेट चुन्नीलालजी पुत्र कंवरीलालजी को छोड़कर चल बसे । बाबू कंवरीलालजी उत्साही एवं कार्यशील युवक है । श्री सेठ चुन्नीलालजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री निहालचन्द्रजी बड़े सरल स्वाभाव मिलन सार, एवं धर्मप्रेमी थे । प समय में ही आप आसाम प्रान्त और बीकानेर राज्य में लोकप्रिय हो गये थे । डिन गढ़ में आपने एक वेदी प्रतिष्ठा भारी समारोह के साथ सम्पन्न कराई। पाप अपने लघु भ्राता श्री घनश्यामदासजी के साथ जब बीकानेर गये तो वहाँ विजय हॉस्पिटल में सी बाई बनने के लिए १२०००) युद्ध राशी प्रदान की । राज्य की ओर से याप को पैरों में सोने का सफल व्यापारी थे । "वर्मा श्रॉयल कम्पनी" से सम्बन्ध स्थापित कर आप आसाम के प्रमुख व्यापारी वन गये । सन् १४ के महायुद्ध * आपकी कार्य कुशलता और साहसिक गुणों पर मुग्ध होकर तत्कालीन सरकार ने आपको "रायबहादुर" की सम्मानित उपाधी से विभित किया । श्रापके दीर्घकाल तक कोई सन्तान न होने से अपने लघुभ्राता 帝 सुपत्र श्री मोहनलालजी को गोद लिया, इसके बाद आपके दो पुत्र हुए | किन्तु उनका सुख और यशस्वी जीवन न देख सके और अकाल में ही स्वर्गवासी दो गये । श्री मोहनलालजी भी अपने एक स्व. सेंट श्री नन्दकलीवाल
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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