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________________ जैन गौरव-स्मृतियाँ स्कूल आदि हैं । बंगाल के दुर्मिस के समय सहस्रों निस्सायों को निः शुल्क - भोजन दिया एवं यथोचित आर्थिक सहायता दी। और भी ऐसे फण्ड स्थापित किए हुए हैं जिनसे देश के किसी भी कोने में स्वास्थ्य एवं शिक्षा प्रचार का कार्य प्रारम्भ किया जावेगा । उपरोक्त महानुभावों का परिचय निम्न प्रकार से है। सेठ बहादुरमलजी-आप बड़े मेधावी पुरुष हुए हैं। १३ वर्ष की अल्पायुमें ही कलकत्ता गये एवं मेसर्स चैनरूप सम्पतराम दूगड़ के यहाँ ८) मासिक पर गुमास्ते बने । सात वर्ष के पश्चात् आप उन्ही के यहाँ . मुनीम हो गये । सन् १८८३ में आपने "हजारीमल हीरालाल" के नाम से .. दुकान शुरू की स्वल्प समय में ही आपने फर्म का सुयश अच्छा फैला दिया। आपके पुत्र श्री जसकरणजी भी सफल व्यवसायी तथा धार्मिक पुरुष थे। आपने विदेशों में मैनचेस्टर तथा लन्दन में भी फर्म स्थापित कर अपने व्यवसाय को उन्नत किया । आपके पुत्र भंवरलालजी बड़े ही होनहार एवं मेधावी हुए। सेठ भंवरलालजी रामपुरिया-आप अपने पूर्वजों की भांति प्रतिभा , सम्पन्न एवं सफल व्यवसायी हुए। आपने बीकानेर में रामपुरिया जैन इण्टर कालेज की स्थापना कर विद्या प्रेम का परिचय दिया । बकानेर चेम्बर आफ कोमर्स की स्थापना करने में आपका महत्वपूर्ण भाग रहा । सन् १९४७ में बीकानेर में युवावस्था में ही देहावसान हो गया। सेठ शिखर चन्दजी तथा नथमलजी रामपुरिया आप दोनों सेठ हजारीमलजी के पुत्र हैं । मेठ हजारीमलजी एक धार्मिक तथा समाज प्रेमी सज्जन हुए है सं० १९६५ में आपका स्वर्गवास हो गया। सेठ शिखरचन्दजी का जन्म सं. २६५० का है। आप परम धार्मिक तथा सरल स्वभावी सज्जन हैं।रामपुरिया काटन मिल के वोर्ड आफ डायरेक्टर के चेयरमैन हैं । आपके घेवरचन्दजी • कँवरलालजी तथा । शान्तिलालजी नामक तीन होनहार पुत्र हैं। आप सभी व्यापार में सहयोग देते हैं। सेठ नथमलजी रामपुरिया :- आपका जन्म सं० १६५६ में हुआ। आप बड़ योग्य और धार्मिक प्रकृति के मिलनसार व्यक्ति हैं । आपने सीधे । जापान से कपड़ा इम्पोर्ट करने का व्यवसाय प्रारम्भ किया जिसमें आपको . श्राशातीत सफलता मिली। आप रामपुरिया कॉटन मिल के डायरेक्टर हैं। . . आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री सम्पतलालजी व्यापार में सहयोग देते हैं तथा मिलन
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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