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________________ ५६६ ★ सेठ छगनमलजी मूथा, बंगलोर : आपका मूल निवासस्थान मारवाड़ जंकशन के निकटस्थ पीपली कस्बा है। बाद में यह परिवार ( जोधपुर ) रहने लगा | सेठ नवलमलजी के ३ पुत्र हुए सेठ सरदारमलजी से ठ गंगारामजी तथा सेठ बालचन्द जी । सेठ सरदारमलजी के २ पुत्र और एक पुत्री हुई। दो पुत्र सेठ छगनमलजी तथा सेठ मूलचन्दजी | सेठ छगनमलजी की प्रारंभिक शिक्षा बलून्दा सें हुआ | अनुभव ज्ञान बहुत बढ़ाचढ़ा हैं। छोटी अवस्था में ही व्यवसाय में जुट गये । कृशाग्रबुद्धि और कर्मठता से इस क्षेत्र में अच्छी योग्यता प्राप्त करली और थोड़े ही अ में कई नई दुकानें आरम्भ की और व्यवयाय को काफी ऊँचे ग्रन्थ के माननीय सहाय स्तर पर पहुँचा दिया | वर्तमान में आपकी करीब १२ दुकाने बंगलौर, मद्रास, जोधपुर आदि में चल रही हैं । धार्मिक वृत्तिः - आप में मानवोचित प्रायः सब सद्गुण पाये जाते हैं । हृदय की महान् उदारता, मिलनसारिता, सादगी और धर्ममय जीवन आपके चरित्र की मुख्य विशेषताएँ हैं । स्वयं धर्म प्रवृत हैं और धार्मिक कार्यों में तन मन व धन से सदा वान रहते हैं । यही कारण है कि आज भारतवर्षीय स्थानवासी जैन समाज में ही नहीं अपितु समस्त जैनसमाज में और ओसवाल समाज में आपका नाम सर्वोपरि आगेवान पुरुषों में बड़े सम्मान के साथ श्रांता है । * आपकी दैनिक जीवनचर्या में सामायिक, प्रतिक्रमण व्रत पच्छखाण, मुनिदर्शन आदि आवश्यक अंग हैं । इन कामों में कभी चूक नहीं पड़ती । प्रतिवर्ष जैनमुनिराजों के दर्शनार्थ अवश्य जाते हैं । परोपकारी कार्य:- आपकी उदारता सर्वतोमुखी है। आपकी ओर से खारची, बलून्दा तथा मेड़ता में परोपकारी औषधालय चल रहे हैं । खारची में आपका परोपकारी दवाखाना काफी विशाल है ।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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