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________________ जैन- गौरव स्मृतियां का उपार्जन किया और इस भव्य मन्दिर के निर्माण में उसका उपयोग किया | इस मंदिर की रचना नलिनीगुल्म विमान को लक्ष्य में रखकर करवाई गई है। इस तरह का इतना भव्य और कलापूर्ण मंदिर अन्यत्र नहीं है । इसमें १४४४ स्म्भ और ८४ शिखरवद्ध जिनालय है । यह मंदिर ४८००० वर्गफीट जमीन पर बनाया हुआ है । इस मंदिर की रचना के संबंध में फर्ग्युसन ने लिखा है कि "इसके सभी स्तम्भ एक दूसरे से भिन्न हैं और बहुत अच्छी तरह से संगठित किये हुए हैं । इस प्रकार के १४४४ विशाल प्रस्तर स्तम्भों पर यह मंदिर अवस्थित है । इनके ऊपर भिन्न २ ऊँचाई के अनेक गुम्बज लगे हुए हैं जिनसे इसकी बनावट का मन के ऊपर बड़ा प्रभाव होता हैं । मन पर प्रभाव डालने वाला इतना अच्छा स्तम्भों का कोई दूसरा संगठन सारे भारत के किसी देवालय में नहीं है ।" - कहा जाता है कि धन्नाशाह ७ मंजिल बनवाने का था, जिसमें से ४ मंजिलों का कार्य, अधूरा रह गया सो रत्नाशाह के वंशज अभीतक उस्तरे से और स्नाशाह का विचार इसको मंजिल तो बनाये जा चुके और तीन अब तक नहीं बन सका । इसके लिए हजामत नहीं बनवाते हैं इस मंदिर का कार्यारम्भ सं १४३४ में हुआ था, लगातार बासठ वर्ष तक कार्य चलता रहा । सं० २४४६ में इसकी प्रतिष्ठा हुई । इस मंदिर का नाम त्रैलोक्यदीपक है। इस मंदिर के निर्माण में लगभग पन्द्रह करोड़ रुपये खर्च हुए | आनंदजी कल्याण जी की पेढी ने एक अच्छे इंजीनियर को इस मंदिर की कीमत आँकने को बुलवायाथा उसने १५ करोड़ की कीमत की थी। राणकपुर का मंदिर अर्थात् नलिनी- गुल्म- विमान कलाकौशल का भव्य नमुना | वरकारणाः- रानी स्टेशन से तीन माइल दूर वरकारण तीर्थ है। यहाँ श्री पार्श्वनाथ भगवान् का प्राचीन बावन जिनालय का भव्य मंदिर है । नाडोल - घरकाणा से तीन कोस दूर नाडोल तीर्थ है। यहाँ सुन्दर ४ प्राचीन जिनमंदिर है । पद्मप्रभु का मंदिर बहुत प्राचीन है । यहाँ से नाइलाई तक भोयरा ( सुरंग मार्ग ) है । VER )X:
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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