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________________ जैन गौरव-स्मृतियाँ *Serie.. कोरणी और गुम्बज है। इसका शिखर तारंगाजी के शिखर के आकार में का है। यह यहाँ का सबसे बड़ा और तीन मंजिल बाला विशाल मन्दिर है। . . (२) महावीर स्वामी का मन्दिर :- इसमें रंगमण्डप की छत बहुत ही सुन्दर है ! इसमें नेमिनाथजी की वरात, भारत-बाहुबलियुद्ध ओदि विविध देश्य चित्रित है। (३) शान्तिनाथजी का मन्दिर (४) पार्श्वनाथजी का मन्दिर और ( ५ ) श्री संभवनाथजी का मन्दिर भी भव्य कलापूर्ण और मनोरमा है । इन मन्दिरों की रचना से ऐसा मालूम होता है कि ये सब एक समय के बने हुए है । श्राव के मन्दिरों की शैली से बहुत मिलते हुए होने से यह अनुमान किया जाता है कि ये सब विमलमंत्रीश्वर के बनवाये हुए हैं। कहा तो ऐसा भी जाता है कि अम्बाजी का मन्दिर भी किसी समय जैन. मन्दिर था । यह तीर्थ अभी दाता स्टट मह । महातीर्थ मुण्डस्थल : कहा जाता है कि बास्थ अवस्था में भगवानमहावार आबू की तलहटी में रहे और खरेड़ी में चार मील दूर मुण्डस्थल में पधारे उनकी स्मृतिरूप में यह तीर्थ स्थापित हुआ है । भग्नावस्था में रहा हुआ जिनमन्दिर इस ग्राम की प्राचीन समृद्धि का परिचय दे रहा है । सोलहवीं सदी तक यह स्थल अच्छी स्थिति में था। जीरावला पार्श्वनाथ :--- सिरोही स्टेट के माण्डार ग्राम से सात कोस दूर जीरावला ग्राम है। यहाँ सुन्दर बावन जिनालग, विशाल चौक और धर्मशाला है ! यहाँ प्राचीन शिलालेख भी अच्छी संख्या में उपलब्ध होते हैं । यह तीर्थ बड़ा चमत्कारिक माना जाता है । मूर्ति के प्रकट होने की चमत्कारिक घटना है। जीरावला पार्श्वनाथ की मूर्ति प्रसिद्ध वैगावतीर्थ जगन्नाथपुरी (उड़ीसा ), व्याणेराव, सादड़ी, नाडलाई. भादि अनेक स्थानों पर है, ऐसा माना जाता है। अनेक भावकगण इस चमत्कारिक तीर्थ की यात्रा करते हैं। కూసు కునుకు తూరుకు (2 - ): కుకుకు కుకు
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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