SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां Seaste इनके अतिरिक्त जीवनचरित्र और प्रबन्धों के रूप में भी विशाल साहित्य है । त्रिपष्टिशलाका पुरुषचरित्र, आदिपुराण, उत्तरपुराण, प्राकृत में ) पद्मचरित्र आदि उत्तमपुरुषों के चरित्र ग्रन्थ हैं। प्रबन्धचिन्तामणि ( मेरुतुगआचार्य निर्मित ) ओर प्रद्य म्नसूरि का प्रभावक चरित्र ग्रन्थ जैनधर्माचार्यों के जीवनचरित्र पर खूब प्रकाश डालता है। जैनसिद्धांतों और गम्भीर तत्वों को समझाने के लिए जैनाचार्यों ने कई कथाएँ, आख्यायिकाएँ और दृष्टांत आदि लिखे हैं । रास, कथा, जीवनचरित आदि से जैनसाहित्य भरा पड़ा है । संस्कृत, प्राकृत, कन्नड़, तामिल तेलगू, गुजराती, हिन्दी आदि भाषाओं में विविध प्रकार के कथा ग्रन्थों की रचना जैनाचार्यों ने की है। इतिहास : जैनाचार्यों के ग्रन्थों, उनके अन्त में दी गई प्रशस्तियों और पट्टावलियों से भारतवर्ष के इतिहास पर बहुत प्रकाश पड़ता है। डॉ सतीशचन्द्र विद्याभूपण ने कहा है कि "ऐतिहासिक संसार में तो जैन साहित्य विश्व के लिए ... सबसे अधिक उपयोगी है। जैनों के बहुत से प्रामाणिक ऐतिहासक ग्रन्थ हैं। ऐसे ग्रन्थ और उपाख्यान जिन्हें भिन्न २ सम्प्रदाय के जैनों ने अनेक तीर्थंकर धर्मगुरु और तत्कालीन घटनाओं के उल्लेख के साथ सुरक्षित रखे हैं । वे पुरातत्त्व सम्बन्धी निर्णय करने के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुए हैं।" .. हेमचन्द्राचार्य का त्रिपष्टिशलाका चरित्र का परिशिष्टपर्व, जिनसेन और गुणभद्र आदिपुराण एवं उत्तरपुराण, प्रभाचन्द्र और प्रद्यम्नसूरि का प्रभावक चरित्र मेरुतुङ्ग का प्रबन्धचिन्तामणि और राजशेखर का प्रबन्ध कोश आदि २ ग्रन्थ ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डालने वाले हैं। . नीति और उपदेश : __ जैनाचार्यों ने केवल जैनधर्म का प्रचार ही नहीं किया किन्तु उन्होंने सर्वसामान्य के नैतिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए बहुत प्रयत्न किये हैं। उन्होंने मानवसमाज को विविध प्रकार से नीति की शिक्षा दी है और नीति विषयक साहित्य सर्वसाधारण लोकभोग्य भाषा में लिख कर प्रचारित किया है। धर्मदासगणि की उपदेशमाला, अमितगति का सुभापित सन्दोह, पुरुपार्थ -
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy