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________________ See* जैन-गौरव-स्मृतियाँ * SHe कोप :--- हेमचन्द्राचार्य का अभिधानचिन्तामाणी कोः इस विपय में सर्वश्रष्ट रचना है। हेमचन्द्र ने 'अनेकार्थसंग्रह सटीक' देशी नाम माला, निघण्टुशेप आदि कोशग्रन्थ भी लिखे है। इनके शिष्य महेन्द्रहरि ने अनेकार्थसंग्रह पर अनेकार्थ कैरवाकरकौमुदी टीका लिखी है । धनंजय ने धनंजयनाममाला नामक कोश, सुधाकलश ने 'एकाक्षर नाममाला' लिखी है। इसके अतिरिक्त शिलोच्छकोप आदि अनेक कोश है । बीसवीं शताब्दी में राजेन्द्रसूर ने अभिधान राजेन्द्र के नाम से विस्तृत कोश ( जिन्हें विश्वकोप कहा जा सकता है. ) ग्रन्थ की रचना की है । पाइझसत्महराणवो और अर्धमागधी कोश इस शताब्दी के कोश ग्रन्थ है। नाटक:--- इस क्षेत्र में भी जैनाचार्यों ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। हेमचन्द्राचार्य के शिष्य रामचन्द्रसूरि ने रघुविलास, नामक नाटक लिखा । हस्तिमल्ल ने मैथिलीकल्याण, विक्रांत कौरवः सुभद्राहरण, अंजना पवनजय नामक नाटक लिखे । हरिश्चन्द्र ने 'जीवधर' नाटक लिखा । जयसिंह सरि ने हमीरमदमर्दन नामक ऐतिहासिक नाटक लिखा। यशःपाल की मोहराज पराजय, रामचन्द्र का प्रबुद्ध रोहिणेय विजयपाल का द्रौपदी स्वगंवर वालचंद्र के कम्णा वनायुध नाटक अदि कई नाटक ग्रन्थ जैनसाहित्यकारों द्वारा रचित हैं। छन्द-अलंकार-इस विषय में भी आचार्य हेमचंद्र, वाग्भद्र जयकार्ति ने तथा यशोविजयजी ने कई अन्य लिखे। कथाः जैनकथासाहित्य बहुत विस्तृत और अगाध है । इस विषय में जैनाचायों की देन बड़ी अद्भुत है। प्राचीनकाल की कथायों को आज तक टिकाये रखने का अधिकांश श्रेय जैनमुनियों और साहित्यकारों को है, यह प्रायः सब पाश्चात्य और पौर्वात्य विद्वान स्वीकार करते हैं। प्रो विन्टर नीटस ने जैनकथासाहित्य और उसकी भारतीय साहित्य को देन एस विषय पर अन्या प्रकाश डाला है । विस्तार भय से यहाँ हम उसे नहीं देने है। जैनागमों, निषुतियों, भाष्यों और चर्णियों में अनेक प्रसंगोपात्त कथाएं उल्लिखित है। MINIAN
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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