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________________ Keet जैन गौरव-स्मृतियां See है । तत्वनिरूपण, न्याय, व्याकरण, काव्य, कोप, नाटक, छन्द, अलंकार, कथा, इतिहास, नीति, राजनीति, अर्थशास्त्र, गणित, ज्योतिप, आयुर्वेद, भूगोल, खगोल, मंत्रतन्त्र, स्तोत्रयोग, अध्यात्म आदि सकल वियों पर जैनविद्वानों ने अधिकारपूर्ण साहित्य प्रस्तुत किया है। . प्राचीन जैनसाहित्य इतना समृद्ध है कि उसका वर्णन इस ग्रन्थ के इन कतिपय पृष्ठों में नहीं किया जा सकता है तदपि उल्लिखित विषयों पर पिछले पृष्ठों में नमूने की तौर पर मुख्य २ प्रसिद्ध लेखकों और ग्रन्थों का दिग्दर्शन और नामनिर्देप किया गया है। इतने उल्लेखमात्र से भी जैन साहित्य की सर्वाङ्गीणता और सर्वव्यापकता का स्थूल परिचय सहज ही में प्राप्त किया जा सकता है। तत्त्वनिरूपणः-- इस विषय पर तो जैनाचार्य और जैनविद्वान लिखें यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है । जैनाचार्यों ने जैनधर्म के तत्त्वों को निरूपण करने वाला विपुल ग्रन्थराशि का निर्माण किया है । गणधररचित मूल जैनागम और अन्य श्रुत केवलियों के रचे हुए आगमों के अतिरिक्त इनके गूढ मर्म को स्पष्ट करने वाले सैंकड़ों नहीं हजारों ग्रन्थों का निर्माण हुआ है । व्यवस्थित शैली से तत्त्वनिरूपण करने वाला प्राचीन ग्रन्यराज उमास्वाति रचित तत्वार्थाधिगम सूत्र है । वाद के प्राचार्यों ने इस ग्रन्थ पर बड़ी २ टीकाएँ लिखकर जैनधर्म के मर्म को प्रकट किया है। न्याय :-- जैनन्याय के प्रथम प्रवत्तक श्री सिद्धसेनदिवाकर और प्राचार्य समन्तभद्र है । सिद्धसेनदिवाकर ने न्यायावतार और समन्तभद्र ने प्राप्तमीमांसा लिखकर जनन्याय और तर्मशास्त्र की मूल प्रतिष्ठा की। जैनाचार्यों ने इस विषय में इतना अधिक और तना सल्ला साहित्य रचा है कि वह विश्व के दार्शनिक इतिहास की मूल्यवान निधिवन गया है। जैनदर्शन का स्याद्वाइनितान्त दार्शनिक संसार के निद महत्व अन्वेषण है। न्याय विषय पर लिख गये साहित्य पर भी पिछले दो
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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