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________________ ther जैन-गौरव-स्मृतियां Si te उपाध्याय, वीसवीं शताब्दी में विजयराजेन्द्रसूरि और न्यायविजय जी जैसे सहा विद्वान् साहित्यिक हुए। उन्नसवीं, बीसवीं शताब्दी में संस्कृत-प्राकृत साहित्य सृजन की गति मंद हो गई और हिंदी, गुजराती आदि भापाओं में विशेष म्हप से साहित्य-सृष्टि हुई । गुजराती और हिंदी भाषा के साहित्य विकास में उन्नीसवीं बीसवीं सदी के जैनमुनियों का मुख्य रूप से योग रहा है। चिदानंद जी कवि रायचन्द्र, विजयानंदसूरि, वीरचंद गाँधी, आत्माराम जी म०, शतावधानी रत्नचन्द्र जी स० आदि २ प्रसिद्ध विद्वान् और लेखक हुए हैं। . . . . . वर्तमान में कई साहित्यकार जैनसाहित्य लेखन का अच्छा कार्य कर रहे हैं। जिसे जैनसाहित्यसागर का संथन कहा जा सकता है । विशिष्ठ विद्वानों में पं० सुखलाल जी, पं० वेचरदास जी, मुनि जिनविजयजी, डॉ० हीरालाल जी, राव जी निमचन्दशाह, श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई, डॉ० बूलचन्दजी, श्री अगरचन्द जी नाहटा श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार, श्री परमेष्टीदासजी, पं० कैलाशचन्दजी, पं० चैनसुखदासजी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । स्थान संकोच से सबके परिचय नहीं दे पा रहे हैं जिसका . हमें खेद है। जैनसाहित्य और साहित्यकारों के सम्बंध में विशेप जानकारी प्राप्त करने के जिज्ञासु पाठकों को श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई का जैन साहित्य नो इतिहास' ग्रंथ देखना चाहिये । उक्त प्रकरण में हम तो केवल विहंगावलोकन मात्र ही कर पाये है। जैनसाहित्य की सर्वाङ्गीणता जैन साहित्य-सरिता का प्रवाह सर्वतोमुखी रहा है। इस सर्वतोमुखी प्रवाह ने भारतीय-साहित्य के प्रत्येक प्रदेश को सिञ्चित और पल्लवित किया है । जैनलेखकों ने केवल अपने धार्मिकतत्त्वों का निरूपगा और समर्थन करने वाला साहित्य ही नहीं लिखा है अपितु भारतीय वाङ्गमय के प्रत्येक अंग व्याकरण, कोप, छन्द, अलंकार आदि पर भी अधिकारपूर्ण लेखनी चलाई Kekekakkekokarkes: (४४०) :kke keko kakkeko
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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