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________________ »»<>>*<>*< जैन-गौरव-स्मृतियां वालभी वाचनाः जिस समय मथुरा में आचार्य स्कन्दिल ने आगमों को व्यवस्थित करने का कार्य किया उसी समय वल्लभी में नागार्जुनसूरि ने भी श्रमण संघ को एकत्रित करके आगमों को व्यवस्थित करने का प्रयत्न किया । जैन-कालगणना में लिखा है कि "जिसकाल में मथुरा में आर्य स्कन्दिल ने आगमोद्धार करके अपनी वाचना शुरू की उसी काल में चलभी नगरी में नागार्जुन सूरी ने भी श्रमण संघ एकत्रित किया और दुर्भिक्ष वश नष्टावशेष श्रागमसिद्धान्तों का उद्धार शुरु किया । वाचक नागार्जुन और एकत्रित संघ को जो-जो आगम और उनके अनुयोगों के उपरान्त प्रकरण ग्रन्थ याद थे वे लिख लिये गये और विस्तृत स्थलों को पूर्वापर सम्बन्ध के अनुसार ठीक करके उसके अनुसार वाचना दी गई । " इसके सम्बन्ध में लोकप्रकाश और समाचारी शतक में यह कहा गया है कि देवगिरि की प्रमुखता में वलभीपुर में जो शास्त्र लेखन हुआ है वही वाली वाचना है । कई आचार्यों की यह परम्परा से मान्यता चली आ रही है । परन्तु नागार्जुन को नन्दीसूत्र में 'वाचक' विशेषण देश. देवगिरिण ने वन्दन किया है इससे नागार्जुन ही वालभी वाचना के प्रवर्त्तक विशेषतया सम्भवित हैं । वीरनिर्वाण संवत् ६८० ( वि० सं० ५१० ) में वलभीपुर में भगवान् महावीर के २७ वें पट्टधर श्री देवर्द्धिगरिण क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में पुनः श्रमण संघ एकत्रित हुआ । उस समय श्राचार्य स्कन्दिल देवर्द्धिगण का और आचार्य नागार्जुन की वाचनाओं का समन्वय किया पुस्तकालेखन :- गया और उन्हें लिखकर पुस्तकास्ट कियागया । उक्त वाचनाओं में रहे हुए भेद को मिटा कर यथाशक्य कररूप दिया गया और महत्वपूर्ण भेदों को पठान्तर के रूप में संकलित एक लिया गया। इसीलिए मूल और टीका में "वाचनान्तरे पुनः " "नागार्जुनीयास्तु पठन्ति " आदि उल्लेख मिलते हैं । इस समय में आगमों में बार बार आने वाले शब्दों को व विषयों को बार बार न लिख कर 'जाव' शब्द से Va (४०१
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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