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________________ S e xजैन-गौरव-स्मृतियां ऐसे कठिन समय में सिंघी इन्द्रराज जी की राजनीतिज्ञता व वीरता ने बड़ा कमाल कर दिखाया। सिंधी जी तथा भण्डारी गंगारामजी . . दोनों मेड़ता की ओर गये और सेना का संगठन प्रारम्भ किया। पिण्डारी.... नेता अमीरखाँ को द्रव्य लोभ से अपनी ओर किया तथा इसकी सहायता से जयपुर पर आक्रमण कर दिया। कई मास तक युद्ध चलता रहा। टोंक के पास फागी स्थान पर जमकर युद्ध हुआ । अन्त में विजय सिंघी जी की ही हुई । जयपुर नरेश इससे घबरा उठे और जोधपुर छोड़ भागे । जयपुर पर भी जोधपुरो सेना का कब्जा हो गया, इस प्रकार विजय पताका लिए सिंघी इन्द्रराजजी. जोधपुर पहुंचे और पुनः, मानसिंह जी को महाराजा बनाया। ___ जब सिंधी इन्द्रराज जी जयपुर से जोधपुर लौटे तो उन्हें प्रधान का पद और जागीरी देकर सम्मानित किया। सिंघी इन्द्रराजजी की वीरता भरी कई कहानियाँ हैं जिससे स्पष्ट है कि, आपने प्राणों की बाजी लगा कर भी जोधपुर-राज्य की सदा सुरक्षा की। जोधपुर की सुरक्षा के लिए ही अमीरखाँ के हाथों से आपका प्राणान्त भी हुआ। सिंघी जी की इस प्रकार की मृत्यु से महाराजा मानसिंह जी को बड़ा धक्का लगा। . . . . . . . ... जोधपुर के इतिहास में सिंघी जी का नाम सदा अमर रहेगा। महाराजा मानसिंह जी इस दुःख को कभी नहीं भूल सके। आज भी मारवाड़ी में महाराजा मानसिंह जी द्वारा इन्द्रराज के सम्बन्ध में लिखा गया निम्न दोहा प्रसिद्ध है। . .. उन्दा वे असवारियाँ उण चौह अम्वेर। . . . . . . धिंण मंत्री जोधाणरा जैपुर कीनी जेर । ___ श्रापके बाद आपके पुत्र फतेहराज जी. को प्रधान पद प्राप्त हुआ और जागीर देकर पुरस्कृत किया गया। .. . मेहता अखेचन्दजी ... जोधपुर की रक्षा के लिये मेहता अखेचन्दजी को भी कई प्रकीर्ण लड़ाईयाँ लड़नी पड़ी थी। कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है कि-"अखेचन्दजी ... अम्बर।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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