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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां ★ (७) मंखलिलपुत्र गोशालक महावीर का शिष्य था परंतु बाद में वह एक .. नवीन सम्प्रदाय का प्रवर्तक वन गया था। इसी गोशालक और उसके , सिध्दातों का बौध्द धर्म के सूत्रों में कई स्थानों पर उल्लेख मिलता है। (८) बौद्धों ने महावीर के सुशिष्य सुधर्माचार्य के गौत्र का और महावीर के निर्वाण स्थान का भी उल्लेख किया है । इत्यादि २ प्रोफेसर जैकोबी महोदय ने विश्वधर्म काँग्रेस में अपने . .., भाषण का उपसंहार करते हुए कहा था कि : In conclusion let me assert my con bichon thatJ aipism is an original system quite distinct and independent from all others and that therefore it is of great importance for the study of philosophical thought and religious life in anclent India. अर्थात-अंत में मुझे अपना दृढ निश्चय व्यक्त करने दीजिये कि जैनधर्म एक मौलिक धर्म है। यह सब धर्मों से सर्वथा अलग और स्वतंत्र धर्म हैं। इसलिए प्राचीन भारतवर्प के तत्त्वज्ञान और धार्मिक जीवन के अभ्यास के लिए यह बहुत ही महत्त्वकाहै।" जेकोवी साहब के उक्त वक्तव्य से यह सिध्द हो जाता है कि जैनधर्म वौद्धधर्म की शाखा नहीं है 'इतना ही नहीं, किसी भी धर्म की शाखा नहीं . है । वह एक मौलिक, स्वतन्त्र और प्राचीन धर्म है" , कई विद्वानों का यह भ्रमपूर्ण मत · है कि जैनधर्म वेधर्म की . शाखा है और उसके आदि प्रवर्तक पार्श्वनाथ (८७७-७७७ . जैनधर्म बेदधर्म से ईसा से पूर्व) है । इस भ्रामक मान्यता के मूल भी प्राचीन है में जो कारण है वह यही है कि इन विद्वानों ने जैनधर्मका अध्ययन जैनशास्त्रों से नहीं किया लेकिन वेदधर्म के अन्थों में जैनधर्म का जो रूप चित्रित है उसीको सत्य मानकर उहोंने अपना अनुमान खड़ा किया है । अशुद्ध आधारों की मित्ती पर खड़ा किया हुआ अनुमान भी अशुध्द ही होता है।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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