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________________ Sabif जैन-गौरव-स्मृतियां Sciss + (१७)............. है गुण विशेष कुशल, सब पन्थों का आदर करने वाले, सब (प्रकार के ) मन्दिरा की मरम्मत कराने वाले, अस्खलित रथ और सैन्य वाले चक्र ( राज्य ) के धुर (नेता), गुप्त ( रक्षित) चक्रवाजे प्रवृत्त चक्रवाले राजर्षिवंशविनिःसृत राजा खारवेल । उक्त लेखों के आधार पर यह प्रतीत होता है कि सम्राट सारवेल ने धर्मक्रियाओं के आचरण के द्वारा भेद विज्ञान (आत्मा और शरीर के, जड़ और चेतन की भिन्नता का सम्यग् ज्ञान ) प्राप्त कर लिया था। उन्होंने धर्म प्रभावना का कार्य करते हुए कुमारी पर्वत पर सकल जैनसंव को एकत्रित किया था और सब तरफ के जैनसाधु और श्रावक वहाँ एकत्रित हुए थे। एकत्रित संघ समुदाय ने अंग सप्तिक ( सात अंगों) के चतुर्थ भाग का पुनरुद्वार किया था। सम्राट् खारवेल के दो रानियाँ-सिन्धुला और वज्रघखाजी थी। इन्होंने भी जैन श्रमणों के लिए उपाश्रय, गुफाएँ और मन्दिर बनवाये थे। ये रानिया भी जैनधर्म परायणा थीं। खारवेल की एक दूसरी विशेषता यह थी कि स्वयं जैन होते हुए भी वे सत्र धर्मों का आदर करते थे। ब्राह्मणों को उन्होंने विपुलदान दिया था। वेदानुयायी और बौद्ध धर्मानुयायी वर्ग को भी उन्होंने सुविधाएँ और सहायता प्रदान की थी। खारवेल सर्वप्रिय सम्राट थे। विभिन्न धर्म वालों ने भी इनका गुणगान किया है । ये सम्राट् बड़े प्रजा-परायण थे। इन्होंन प्रजा कल्याण के लिए विपुल द्रव्य का सदुपयोग किया था, तालाब खुदवाये थे, पानी की नहरें बन्द पड़ी थीं उन्हें पुनः प्रारम्भ की थीं, नवीन घरों का निर्माण और प्राचीन गृहों का उद्धार किया था, उत्सव और धर्मासभाएँ आयोजित की थीं । तात्पर्य यह है कि खारवेल प्रजावत्सल, धर्मापरायण और महान प्रभावक सम्राट् हुए । भारतीय इतिहास में उनके समान सम्राट ये ही हैं। इस महान सम्राट ने जैनधर्म का गौरव बढ़ाया। समाट् खारवेल के बाद भी यहुत लम्बे समरा तक कलिंग में जैनधर्म का प्रभुत्व बना रहा। चीनी यात्री हेनसांग जो सातवीं शताब्दी
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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